Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 346
________________ गाथा १२३ ] चरित्तमोहणीय-उवसामणाए करणकज्जणिदेसो ३०३ वलियमेत्तसेसाए जो अत्थविसेसो तप्परूवणद्वमुत्तरसुत्तावयारो * एत्तो हिदिखंडयसहस्साणि बहूणि गदाणि, तदो मायाए पढमहिदीए तिमु आवलियासु समयणासु सेसासु दुविहा माया मायासंजलणे ण संछुहदि, लोहसंजलणे च संछुहदि । 5२४६. एत्थ कारणं पुव्वं व परवेयव्वं । * पडिआवलियाए सेसाए आगाल-पडिआगालो वोच्छिष्णो । ६ २४७. सगमं । * समयाहियाए आवलियाए सेसाए मायाए चरिमसमयउवसामगो मोत्त ण दोआवलियबंधे समयणे । ६ २४८. एदं पि सुत्तं सुगमं । संपहि एदम्मि संधिविसेसे वट्टमाणस्स चरिमसमयमायावेदगस्स द्विदिबंधपमाणावहारण मुत्तरसुत्तारंभो * ताधे माया-लोभसंजलणाणं द्विदिवंधो मासो । $ २४९. सुगमं । * सेसाणं कम्माणं हिदिबंधो संखेजाणि वस्साणि । होनेपर मायासंज्वलनकी प्रथम स्थिति के एक समय कम तीन आवलिप्रमाण शेष रहनेपर जो अर्थ विशेष होता है उसका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रका अवतार करते हैं ___ * इसके बाद बहुत हजार स्थितिकाण्डक व्यतीत होते हैं, तब मायासंज्वलनकी प्रथम स्थितिमें एक समय कम तीन आवलियोंके शेष रहनेपर दो प्रकारकी मायाको मायासंज्वलनमें संक्रान्त नहीं करता है, लोभसंज्वलनमें संक्रान्त करता है। $ २४६. यहाँपर कारणका पहलेके समान कथन करना चाहिये। * प्रत्यालि के शेष रहनेपर आगाल और प्रत्यागाल व्युच्छिन्न होते हैं। ६२४७. यह सूत्र सुगम है ? * एक समय अधिक एक आवलिकालके शेष रहनेपर एक समय कम दो आवलिप्रमाण नवकबन्धको छोड़कर तीन प्रकारकी मायाका अन्तिम समयवर्ती होकर उपशामक होता है। ६२४८. यह सूत्र भी सुगम है। अब इस सन्धिविशेषमें विद्यमान अन्तिम समयवर्ती मायावेदकके स्थितिबन्धके प्रमाणका अवधारण करनेके लिए आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं * उस समय माया और लोभसंज्वलनका स्थितिबन्ध एक मास होता है। $ २४९. यह सूत्र सुगम है। * शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात वर्षप्रमाण होता है ।

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