Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
गाथा १२३ ] चरित्तमोहणीयउवसामणाए करणक जणिहसो
* सेसाणं कम्माणं हिदिखंडयं पलिदोवमस्स संखेजदिभागो ।
$ २४१. एत्थ सेसकम्मणिद्देसेण अंतरकरणसमत्तीदो पहुडि मोहणीयस्स ट्ठिदिखंडयासंभवो जाणाविदो, मोहणीयवाणमिह सेसभावेण विवक्खियत्तादो । एवमणुभागखंडयस्स वि. मोहणीयवज्जेसु कम्मेसु अणंतगुणहाणीए पत्ती अणुगंतव्वा, सुत्तस्सेदस्स देसामासयत्तादो। संपहि माणसंजलशुच्छिट्ठावलियाए समयूणावलियमेत्तगोवुच्छाणं कत्थ कधं वा विवागो होदि त्ति आसंकाए उत्तरसुत्तमाह
* जं तं माणसंतकम्ममुदयावलियाए समयणाए तं मायाए त्थियुकसंकमेण उदए विपचिहिदि ।
.5२४२. जं तं चरिमसमए माणवेदगेण माणसंतकम्ममुच्छिट्ठावलियाए परिसेसिदं तमिदाणिं मायासंजलणसरूवेण त्थिवुक्कसंकमेण उदये विपञ्चदि त्ति भणिदं होइ । को स्थिवुकसंकमो णाम ? उदयसरूवेण समद्विदीए जो संकमो सो त्थिवुक्कसंकमो त्ति भण्णदे । एसो स्थिवक्तसंकमेण उच्छिट्ठावलियाए विवागकमो कोहसंजलणस्स वि जोजेयव्यो । संपहि माणसंजलणस्स दुसमयणदोआवलियमेत्ते णवकबंधसमयपबद्धाणमणुवसंताणं मायावेदगकालब्भंतरे उवसामणकमजाणावमुत्तरसुत्तणिद्देसो- * तथा शेष कर्मोंका स्थितिकाण्डक पन्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण होता है।
$ २४१. यहाँपर शेष कर्म ऐसा निर्देश करनेसे अन्तरकरणकी समाप्तिके समयसे लेकर मोहनीयकर्मका स्थितिकाण्डक असम्भव है इस बातका ज्ञान कराया है, क्योंकि मोहनीय कमेके अतिरिक्त कर्म यहाँपर 'शेष कर्म' पद द्वारा विवक्षित किये गये हैं। इसी प्रकार मोहनीयकर्मसे अतिरिक्त कर्मोके अनुभागकाण्डककी भी अनन्तगुणी हानिरूपसे प्रवृत्ति जाननी चाहिये, क्योंकि यह सूत्र देशामर्षक है। अब मानसंज्वलनसम्बन्धी उच्छिष्टावलिके एक समय कम आवलिप्रमाण गोपुच्छोंका कहाँपर किस प्रकार विपाक होता है ऐसी आशंका होनेपर आगेके सूत्रको कहते हैं
__* उस समय मान संज्वलनका जो एक समय कम उदयावलिप्रमाण सत्कर्म शेष रहा वह स्तिवुकसंक्रमके द्वारा मायाके उदयमें विपाकको प्राप्त होगा।
२४२. मानवेदकने अपने अन्तिम समयमें जो उच्छिष्टावलिप्रमाण मानसत्कर्म शेष रखा वह इस समय स्तिवुकसंक्रमके द्वारा मायासंज्वलनरूपसे उसके उदयमें विपाकको प्राप्त होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। .
शंका-स्तिवुकसंक्रम किसे कहते हैं ?
समाधान- उदयरूपसे समान स्थितिमें जो संक्रम होता है उसे स्तिवुकसंक्रम कहते हैं।
यह स्तिवुकसंक्रमके द्वारा उच्छिष्टावलिका यह विपाकक्रम क्रोधसंज्वलनका भी लगा लेना चाहिये। अब मानसंज्वलनके दो समय कम दो आवलिप्रमाण अनुपशान्त नवक समयप्रबद्धोंके मायासंज्वलनके वेदककालके भीतर उपशमानेके क्रमका ज्ञान करानेके लिए आगेके सूत्रका निर्देश करते हैं