Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 296
________________ गाथा १२३ ] चरितमोहणीय-उवसामणाए करणकजणिदेसो २५३ केसि कम्माणमंतरं करेइ त्ति आसंकाए इदमाह ____ * बारसण्हं कसायाणं णवण्हंणोकसायवेदणीयाणं च, णत्थि अण्णस्स कम्मरस अंतरकरणं। १४१. बारसकसायाणं णवणोकसायाणं चेव अंतरकरणमाढवेइ, णाण्णेसिं कम्माणमिदि वुत्त होइ । संपहि एदेसिमंतरं करेमाणो केसि कम्माणं केत्तियं पढमहिदि मोत्तूण केत्तियाओ द्विदीओ कदमम्मि उद्देसे घेत्तूणंतरं करेदि त्ति सिस्साहिप्पायमासंकिय तण्णिण्णयविहाणद्वमुत्तरं पबंधमाह___*जं संजलणं वेदयदि, जं च वेदं वेदयदि, एदेसि दोहं कम्माणं पढमद्विदीओ अंतोमुहुँत्तिगाओ ठवेदूण अंतरकरणं करेदि । 5 १४२. एत्थ ताव पुरिसवेद-कोहसंजलणाणमुदएण सेढिमारूढो जीवो घेत्तव्वो, सव्वेसिमक्कमेण परूवणोवायाभावादो। तदो दोण्हमेदेसि कम्माणमंतोमुहुत्तमेत्तीओ पढमट्टिदीओ मोत्तूण उवरि केत्तियाओ वि द्विदीओ घेत्तूणंतरं करेदि त्ति सुत्तत्थविणिच्छओ । तत्थ पुरिसवेदपढमहिदिपमाणं णव सयवेदोवसामणद्धा इत्थिवेदोवसामणद्धा सत्तणोकसायोवसामणद्धा चेदि तिण्हमेदेसिं अद्धाणं समासमेत्तं होइ । कोहसंजलणस्स पुण एत्तो विसेसाहिया पढमट्ठिदी होइ । केत्तियमेत्तो विसेसो । पुरिसवेदपढमहिदीए तात्पर्य है । अब किन कर्मोंका अन्तर करता है ऐसी आशंका होनेपर इस सूत्रको कहते हैं । ___ * बारह कषाय और नौ नोकषायवेदनीयका अन्तर करता है, अन्य कर्मका अन्तरकरण नहीं होता। - $ १४१. बारह कषाय और नौ नोकषायके अन्तरकरणका ही आरम्भ करता है, अन्य कर्मोंका नहीं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब इन कर्मोंका अन्तर करता हुआ किन कर्मोंकी कितनी प्रथम स्थितिको छोड़कर किस स्थानपर किसकी कितनी स्थितियोंको. ग्रहणकर अन्तर करता है इस प्रकार शिष्यके अभिप्रायको आशंकारूपसे ग्रहणकर उसका निर्णय करनेके लिए आगेके प्रबंधको कहते हैं ___ * जिस संज्वलनका वेदन करता है और जिस वेदका वेदन करता है इन दोनों कर्मोकी प्रथम स्थिति अन्तर्मुहुर्तप्रमाण स्थापितकर अन्तरकरण करता है। ... १४२. सर्वप्रथम यहाँपर पुरुषवेद और क्रोधसंज्वलनके उदयसे श्रेणीपर चढ़े हुए जीवको ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि सबके युगपत् कथन करनेका उपाय नहीं पाया जाता। अतः इन दोनों कर्मोंकी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण प्रथम स्थितिको छोड़कर ऊपरकी कितनी ही स्थितियोंको ग्रहणकर अन्तर करता है यह इस सूत्रके अर्थका निर्णय है। उसमें पुरुषवेदको प्रथम स्थितिका प्रमाण नपुंसकवेदका उपशामन काल, स्त्रीवेदका उपशामन काल और सात नोकषायोंका उपशामन काल इन तीन कालोंका जितना योग हो उतना होता है । परन्तु क्रोधसंज्वलनकी प्रथम स्थिति इससे कुछ अधिक होती है। . शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ?

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