Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 325
________________ २८२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [चरित्तमोहणीय-उवसामणा संखेजदिभागे चेव एवं विहं द्विदिबंधमाढविय गच्छमाणस्स पुणो वि संखेजसहस्समेत्तेसु हिदिबंधेसु एदेणेव विहाणेण समइक्कतेसु तदो इत्थिवेदोवसामणद्धा समप्पा, ताधे चेव इत्थिवेदो सव्वोवसामणाए उवसामिदो त्ति जाणावणद्वमुत्तरसुत्तहि सो * एदेण कमेण संखेज्जेसु हिदिबंधसहस्सेसु गदेसु इत्थिवेदो उवसामित्रमाणो उवसामिदो। $ १९४. एदं पि सुत्तं सुगमं । एवमित्थिवेदमुवसामिय तदणंतरसमए छण्णोकसाय-पुरिसवेदाणमुवसामणमाढवेदि ति पदुप्पायणफलमुत्तरसुत्तं * इत्थिवेदे उवसंते से काले सत्तण्हं णोकसायाणं उवसामगो। ६१९५. सुगमं। * ताधे चेव अण्णं डिदिखंडयमण्णमणुभागखंडयं च आगाइद, अण्णो च हिदिबंधो पबद्धो। 5 १९६. एत्थ ट्ठिदि-अणुभागखंडयाणि मोहणीयवजाणं कम्माणं अवगंतवाणि, मोहणीयस्स तदुभयपवुत्तीए एदम्मि विसए जुत्ति-सुत्तेहिं पडिसिद्धत्तादो । द्विदिबंधो पुण सत्तण्हं पि मूलपयडीणं जाओ उत्तरपयडीओ बझंति तासिं सव्वासिमेव होदि त्ति दहव्वं । संख्यातवें भागके होनेपर इस प्रकारके स्थितिबन्धका आरम्भ करके जो जीव अवस्थित है उसके फिर भी संख्यातों हजार स्थितिबन्धोंके इसी विधिसे व्यतीत होनेपर तत्पश्चात् स्त्रीवेदका उपशामनाकाल समाप्त होता है। अतः उसी समय सर्वोपशामनारूपसे स्त्रीवेद उपशमाया गया इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं * इस क्रमसे संख्यात हजार स्थितिबन्धोंके व्यतीत होनेपर उपशामित किये जानेवाले स्त्रीवेदको उपशामित किया। 5 १९४. यह सूत्र भी सुगम है। इस प्रकार स्त्रीवेदको उपशमाकर तदनन्तर समयमें छह नोकषायों और पुरुषवेदको उपशमानेके लिए आरम्भ करता है इस बातका कथन करनेके लिए उत्तर सूत्रको कहते हैं * स्त्रीवेदके उपशान्त होनेपर तदनन्तर समय में सात नोकषायोंका उपशामक होता है। ६ १९५. यह सूत्र सुगम है। * उसी समय अन्य स्थितिकाण्डक और अन्य अनुभागकाण्डकको ग्रहण किया तथा अन्य स्थितिबन्ध बाँधा । $ १९६. यहाँपर स्थितिकाण्डक और अनुभागकाण्डक मोहनीयकर्मको छोड़कर अन्य कोंके जानने चाहिये, क्योंकि इस स्थलपर मोहनीयकी उन दोनोंरूप प्रवृत्तिका युक्ति और सूत्र दोनों प्रकारसे निषेध है। स्थितिबन्ध तो सातों ही मल प्रकृतियोंकी जो उत्तर प्रकृतियाँ बंधती हैं उन सभीका होता है ऐसा जानना चाहिये ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402