Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा १२३ ] चरितमोहणीय-उवसामणाए करणकज णिद्दसो
२८५ बद्धाणं बंधावलियाणदिकमादो समयणदुचरिमावलियबद्धाणं च उवसामणावलियाए अञ्ज वि पडिवुण्णत्ताभावादो। तम्मि चेव समए डिदिबंधपमाणावहारणद्वमुत्तरो सुत्तपबंधो
* तस्समए पुरिसवेदस्स हिविगंधो सोलस वस्साणि । * संजलणाणं हिदिबंधो बत्तीस वस्साणि । * सेसाणं कम्माणं हिदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि ।
२०४. पुव्वं संखेज्जसहस्समेत्तो एदेसि विदिबंधो, तत्तो संखेज्जगुणहाणीए हाइदूण सवेदचरिमसमए पुरिसवेद-चउसंजलणाणं जहाकम सोलस-बत्तीसवस्समेतो जादो। सेसाणं पुण कम्माणमज्ज वि संखेज्जवस्ससहस्समेत्तो चेव दट्टब्वो त्ति मणिदं होदि।
* पुरिसवेदस्स पढमहिदीए जाधे वे आवलियाओ सेसाओ ताधे आगाल-पडिआगालो वोच्छिण्णो ।
६२०५. पढम-विदियट्ठिदिपदेसग्गाणमुक्कडणोकड्डणावसेण परोप्परविसयसंकमो आगाल-पडिआगालो त्ति भण्णदे । विदियट्ठिदिपदेसग्गस्स पढमट्टिदीए आगमणमागालो। पढमट्टिदिपदेसग्गस्स विदियट्ठिदीए पडिलोमेण गमणं पडिआगालो त्ति
समाधान--क्योंकि जो अन्तिम आवलिमें बँधे हैं उनकी बन्धावलिका काल अभी व्यतीत नहीं हुआ और जो एक समय कम द्विचरम आवलिमें बँधे हैं उनकी उपशामनावलि अभी भी पूर्ण नहीं हुई है। अब उसी समय स्थितिबन्धके प्रमाणका अवधारण करनेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं--
* उस समय पुरुषवेदका स्थितिबन्ध सोलह वर्षप्रमाण होता है । * संज्वलनोंका स्थितिबन्ध बतीस वर्षप्रमाण होता है। * तथा शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता है ।
5२०४. पहले इन कर्मोंका संख्यात हजार वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध होता रहा। उससे संख्यातगुणी हानिरूपसे घटकर सवेद भागके अन्तिम समयमें पुरुषवेद और चार संज्वलनोंका क्रमसे सोलह वर्ष और बत्तीस वर्ष हो गया। शेष कर्मो का तो अभी भी संख्यात हजार वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध जानना चाहिये यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* पुरुषवेदकी प्रथम स्थितिमें जब दो आवलि शेष रहीं तब आगाल और प्रत्यागालोंकी व्युच्छित्ति हो गई।
$२०५. प्रथम और द्वितीय स्थितिके प्रदेशपुञ्जोंका उत्कर्षण और अपकर्षणवश पर. स्पर विषयसंक्रमको आगाल और प्रत्यागाल कहते हैं । द्वितीय स्थितिके प्रदेशपुब्जका प्रथम स्थितिमें आना आगाल है तथा प्रथम स्थितिके प्रदेशपुञ्जका प्रतिलोमरूपसे दूसरी स्थितिमें