Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा १२३ ] चरित्तमोहणीय-उवसामणाए करणकज्जणिहेसो
२८३ * एवं संखेज्जेसु हिदिवंधसहस्सेसु गदेसु सत्तहं णोकसायाणमुवसामणद्धाए संखेज्जदिभागे गदे तदो णामा-गोद-वेदणीयाणं कम्माणं संखेजवस्सहिदिगो बंधो ।
१९७. एदम्मि अवत्थंतरे तिण्हमघादिकम्माणं द्विदिबंधो असंखेजवस्सियादो परिहाइदूणेकसराहेण संखेजवस्सिओ जादो त्ति एसो एत्थ सुत्तत्यसमुच्चओ। एवमेत्थ सव्वेसिमेव कम्माणं ठिदिखंडे संखेज्जवस्सिये जादे' तत्थ जो द्विदिबंधप्पाबहुअविही तप्परूवणडमुवरिमो सुत्तपबंधो
* ताधे हिदिबंधस्स अप्पाबहुभं ।
१९८. सुगमं । * तं जहा। $ १९९. एदं पि सुबोहं । * सव्वत्थोवो मोहणीयस्स हिदिबंधो । * णाणावरण-दसणावरण-अंतराइयाणं हिदिबंधो संखेजगुणो । * णामा-गोदाणं विदिबंधो संखेजगुणो ।
* इस प्रकार संख्यात हजार स्थितिबन्धोंके व्यतीत होनेपर सात नोकषायोंके उपशामनाकालके संख्यातवें भागके व्यतीत होनेपर तत्पश्चात् नामकर्म, गोत्रकर्म और वेदनीय कर्मोंका संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध होता है।
६ १९७. इस अवस्थाके भीतर तीन अघाति कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यात वर्षसे घटकर एक वारमें संख्यात वर्षप्रमाण हो गया यह यहाँ सूत्रके अर्थका सार है। इस प्रकार यहाँपर सभी कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात वर्षप्रमाण हो जानेपर वहाँ जो स्थितिबन्धसम्बन्धी अल्पबहुत्वविधि प्राप्त होती है उसका कथन करनेके लिए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* उस समय स्थितिबन्धका अल्पबहुत्व । ६ १९८. यह सूत्र सुगम है। * वह जैसे। ६ १९९. यह सूत्र भी सुबोध है। * मोहनियकर्मका स्थितिबन्ध सबसे अल्प है ।
* उससे ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है।
* उससे नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है ।
१. ता. प्रतौ द्विदिखंडो संखेज्जवस्सियो जादो इति पाठः