Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 322
________________ चरितमोहणीय- उवसामणाए करणकज्जणिद्देसो गाथा १२३ ] माढवेदिति भणिदं होइ । * ताधे चेव अपुव्वं द्विदिखंडयम पुव्वमणुभागखंडयं द्विदिबंधो च पत्थिदो । २७९ १८६. जाघे इत्थिवेदमुवसामेदुमाढतो ताघे चैव मोहणीयवज्जाणं कम्माणमपुव्वं ट्ठिदिखंडयमणुभागखंडयं च पुव्वाढत्तट्ठिदि - अणुभागखंडयाणं समत्ती - वाढवे | मोहणीयस्स पुण एत्थ णत्थि ट्ठिदिघादो अणुभागघादो, ट्ठिदिबंधो च पत्थिदो | एवं भणिदे णाणावरणादीणमसंखेज्जगुणहाणीए मोहणीयपयडीणं च बझमाणियाणं संखेज्जगुणहाणीए पुव्यट्ठिदिबंधादो अण्णो द्विदिबंधो एदम्मि संधीए पारद्धो ति भणिदं होइ । * जहा णवुंसयवेदो उवसामिदो तेणेव कमेण इत्थवेदं पि गुणसेढीए उवसामेदि । $ १८७. जहा णव सयवेदो असंखेज्जगुणाए सेढीए उवसामिदो तहा चैव पडिसमय मसं खेज्जगुणाए सेढीए इत्थवेदं च उवसामेदित्ति भणिदं होदि । णवरि इत्थवेदोवसामणद्धार संखेज्जदिभागे गदे तत्थ जो विसेसो संभवंतओ तणिद्देसविहाणमुत्तरमुत्तायारो- के लिये आरम्भ करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । * उसी समय अपूर्व स्थितिकाण्डक, अपूर्व अनुभागकाण्डक और अपूर्व स्थितिबन्ध प्रारम्भ होता है । $ १८६. जिस समय स्त्रीवेदको उपशमानेके लिये आरम्भ किया उसी समय मोहनीय कर्मको छोड़कर शेष कर्मोंके पहले आरम्भ किये गये स्थितिकाण्डक और अनुभाग काण्डकों की समाप्ति हो जानेके कारण अपूर्व स्थितिकाण्डक और अपूर्व अनुभाग काण्डका आरम्भ करता है । परन्तु मोहनीयकर्मका यहाँ पर स्थितिघात और अनुभागघात नहीं है, मात्र स्थितिबन्धको प्रारम्भ किया। ऐसा कहने पर ज्ञानावरणादि प्रकृतियोंके असंख्यात गुणहानिरूपसे और बँधनेवाली मोहनीय प्रकृतियोंका संख्यात गुणहानिरूपसे इस सन्धिमें अन्य स्थितिबन्ध प्रारंभ किया यह उक्त कथनका तात्पर्य है । * जिस प्रकार नपुंसक वेदको उपशमाया है उसी क्रम से स्त्रीवेद को भी गुणश्रेणिरूपसे उपशमाता है । $ १८७. जिस प्रकार असंख्यातगुणी श्रेणिरूपसे नपुंसकवेदको उपशमाया है उसी प्रकार प्रति समय असंख्यातगुणी श्र ेणिरूपसे स्त्रीवेदको उपशमाता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेदके उपशमानेके कालके संख्यातवें भागप्रमाण कालके जाने पर वहाँ जो विशेष सम्भव हो उसका निर्देश करनेके लिये आगे के सूत्रका अवतार करते हैं

Loading...

Page Navigation
1 ... 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402