Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 298
________________ गाथा १२३] चरित्तमोहणीयउवसामणाए करणकजणिदेसो . २५५ ६१४५. सव्वेसिमेव कसाय-णोकसायाणमुदइल्लाणमणुदइल्लाणं च अंतरचरिमद्विदी सरिसी चेव होइ, विदियट्टिदीए पढमणि सेयस्स सव्वत्थ सरिसभावेणावट्ठाणदंसणादो । तदो उवरि समद्विदिअंतरमिदि वुत्तं । हेट्ठा वुण विसरिसमंतरं होइ, अणुदइन्लाणं सव्वेसि पि सरिसत्ते वि उदइल्लाणमण्णदरवेद-संजलणाणमंतोमुत्तमेत्तपढम• हिंदीदो परदो अंतरपढमहिदीए समवट्ठाणदंसणादो । तदो पढमहिदीए विसरिसत्तमस्सियण हेडा विसमद्विदियमंतरं होदि त्ति भणिदं । १४६. संपहि अंतरं करेमाणो किमेक्केणेव समएणागाइदविदीओ सुण्णाओ करेदि आहो कमेणे ति आसंकाए अंतरुक्कीरणद्धापमाणणिद्दे सकरणमुरारो पबंधो * जाधे अंतरमुक्कीरदिताधे अण्णो हिदिघंधो पबद्धो अण्णं द्विदिखंडयमण्णमणुभागखंडयं च गेण्हदि । ६१४७. जम्हि समए अंतरकरणं आढत्तं तम्हि चेव समए हेडिमद्विदिबंध १४५, उदयस्वरूप और अनुदयस्वरूप सभी कषायों और नोकषायोंके अन्तरकी अन्तिम स्थिति सदृश ही होती है, क्योंकि द्वितीयं स्थिति के प्रथम निषेकका सर्वत्र सदृशरूपसे अवस्थान देखा जाता है, इसलिए ऊपर अन्तर समस्थितिवाला है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। किन्तु नीचे अन्तर विसदृश होता है, क्योंकि अनुदयस्वरूप सभी प्रकृतियोंके अन्तरके सदृश होनेपर भी उदयस्वरूप अन्यतर वेद और अन्यतर संज्वलनकषायकी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण प्रथम स्थितिसे परे अन्तर और प्रथम स्थितिका अवस्थान देखा जाता है। इसलिये प्रथम स्थितिके विसदशपनेका आश्रयकर नीचे विषम स्थिति अन्तर होता है यह कहा है। विशेषार्थ-तीन वेद और चार संज्वलनोंमें से जिन दो प्रकृतियोंके उदयसे श्रेणिपर चढ़ता है उनकी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण प्रथम स्थिति स्थापितकर उनसे ऊपरकी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण स्थितियोंका अन्तर करता है। तथा इनके अतिरिक्त अन्य जिन दो वेदों और ग्यार कषायोंका अनुदय रहता है उनकी उदयावलिप्रमाग प्रथम स्थिति स्थापितकर उससे ऊपरकी उतनी स्थितियोंका अन्तर करता है जिससे ऊपरके भागमें यह अन्तर उदयस्वरूप प्रकृतियोंके अन्तरके समान हो जाता है । अतः उदयस्वरूप प्रकृतियोकी प्रथम स्थिति अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होती है और अनुदयस्वरूप प्रकृतियोंकी प्रथमस्थिति एक आवली प्रमाण होती है, इसलिये इस प्रथम स्थितिके विषम होनेसे अधोभागमें अन्तरमें विषमता आ जाती है । अर्थात् जहाँ उदयस्वरूप प्रकृतियोंका अन्तर अन्तर्मुहूर्तप्रमाण प्रथम स्थितिको छोड़कर प्रारम्भ होता है वहाँ अनुदयस्वरूप प्रकृतियोंका वह अन्तर मात्र एक आवलिप्रमाण प्रथम स्थितिको छोडकर प्रारम्भ होता है। ६१४६. अब अन्तरको करता हुआ क्या एक ही समय द्वारा ग्रहण की गई स्थितियोंको शून्यरूपकर देता है या क्रमसे करता है, ऐसी आशंका होनेपर अन्तर-उत्कीरण कालके प्रमाणको निर्देश करनेके लिये आगेके प्रबन्धको कहते हैं * जब अन्तरका प्रारम्भ करता है तब अन्य स्थितिबन्ध बाँधता है तथा अन्य स्थितिकाण्डक और अन्य अनुभागकाण्डकको ग्रहण करता है। $ १४७. जिस समय अन्तरकरणका आरम्भ किया उसी समय पूर्वके स्थितिबन्ध,

Loading...

Page Navigation
1 ... 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402