Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 314
________________ २७१ गाथा १२३ ] चरित्तमोहणीय उवसामणाए करणकज्जणिद्देसो * जहा एवं पुरिसवेदस्स समयपबद्धादो छसु आवलियासु गदासु उदीरणा त्ति कारणं णिदरिसिदं तहा एवं सेसाणं कम्माणं जदि वि एसो विधी णत्थि, तहा वि अंतरादो पढमसमयकदादो पाए जे कम्मंसा बज्झति तेसिं कम्माणं छसु आवलियासु गदासु उदीरणा । $ १७०. सेसाणं कम्माणं कोहसंजलणादीणं णाणावरणादीणं च जइ वि एसो विधी णिदरिसणोवणयविसयो ण संभवइ तहा वि पुरिसवेदविसयणिदरिसणोवणयमेदं णिबंधणं कादूण अंतरकरणादो उवरि सव्वत्थ सव्वेसिं कम्माणं सहावदो चेव छसु आवलियासु गदासु उदीरणाणियमो समालवेयव्यो त्ति एसो एदस्स भावत्थो। * एदं णिदरिसणमेत्ततं पमाणं कादुणिच्छयदो गेण्हियव्वं । $ १७१. सिस्समइवित्थारणट्ठमेदमसम्भूदत्थोदाहरणमुहेण णिदरिसणोवणयणमम्हेहिं पयासिदं, अण्णहा अव्वुप्पण्णाणं सिस्साणं पयदत्थविसयसंमोहणिरायरणाणुववत्तीदो । तदो दिसामेत्तेणेदेण पुव्युत्तमत्थजांदं पमाणं कादण विप्पडिवत्तीए विणा णिच्छयदो गेण्हियव्वं, सव्वण्हुवएसस्स सिद्धसरूवस्स विप्पडिवत्तिविसयमुल्लंघियण सम्मवट्ठाणादो त्ति एसो एदस्स भावत्थो । * जिस प्रकार उक्त विधिसे पुरुषवेदके नूतन समयप्रबद्धमेंसे छह आवलियोंके जानेपर उदीरणा होती है इसका सकारण निदर्शन किया उसी प्रकार उक्त प्रकारसे शेष कर्मोंकी यद्यपि यह बिधि नहीं है तथापि अन्तर किये जानेके प्रथम समयसे लेकर जो कर्मपुञ्ज बंधते हैं उन कर्मोकी छह आवलियाँ जानेपर उदीरणा होती है। १७०. शेष क्रोध संज्वलन आदि और ज्ञानावरण आदिकी यद्यपि निदर्शनोपनय विषयक यह विधि सम्भव नहीं है तथापि पुरुषवेदविषयक इस निदर्शनोपनयको कारण बनाकर अन्तरकरणके बाद सर्वत्र सभी कर्मों के स्वभावसे ही छह आवलियोंके जानेपर उदीरणा सम्बन्धी नियमका अवलम्बन करना चाहिए यह इस सूत्रका भावार्थ है। * यह निदर्शनमात्र है, इस रूपमें इसे प्रमाण करके निश्चयसे ग्रहण करना चाहिये। ६१७१. अति विस्तारसे शिष्यको बतलानेके लिए असद्भूत अर्थरूप उदाहरण द्वारा इस निदर्शनोपनयको हमने प्रकाशित किया है । अन्यथा अव्युत्पन्न शिष्योंका प्रकृत अर्थविषयक सम्मोहका निराकरण नहीं बन सकता है, इसलिये दिशामात्र इस निदर्शनद्वारा पूर्वोक्त अर्थजातको प्रमाण करके विना विवादके निश्चयसे अर्थजातको ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि सर्वज्ञका उपदेश सिद्धस्वरूप है, इसलिये विवादके विषयको उल्लंघन करके वह अवस्थित है यह इसका भावार्थ है। विशेषार्थ-अन्तर क्रियाके सम्पन्न होनेके प्रथम समयसे लेकर बँधनेवाले जितने भी कर्म हैं उनकी उदीरणा छह आबलियोंके बाद ही प्रारम्भ होती है। यह परमार्थ है । इसे स्पष्ट

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