Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 297
________________ wwwwwwwwwwwwwwww २५४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [चरित्तमोहणी-उवसामणा देसूणतिभागमेत्तो । तिण्हं कोहाणमुवसामणद्धामेत्तोत्ति भणिदं होइ । एवमेदेसि दोण्हं कम्माणमंतोमुहुत्तमेत्तिं पढमहिदि ठवेयण पुणो उवरि केत्तियाओ द्विदीओ घेत्तणंतरं करेदि ति आसंकाए णिण्णयकरणद्वमुत्तरसुत्तारंभो *पढमहिदीदो संखेजगुणाओ द्विदीओ आगाइदाओ अंतरह। ६१४३. अंतरकरणद्वमुवरि संखेज्जगुणाओ द्विदीओ गुणसेढिसीसएण सह गहिदाओ त्ति वृत्तं होई। संपहि अण्णदरवेद-संजलणाणं पढमद्विदि जहा अंतोमुहुत्तमेति ठवेइ, किमेवं सेसाण मेकारसकसाय-अट्ठणोकसायाणं पि ठवेइ आहो णेदि आसंकाए णिरायरणट्ठमिदमाह * सेसाणमेकारसण्हकसायाणमट्ठण्डं च णोकसायवेदणीयाणमुदयावलियं मोत्तण अंतरं करेदि । ६१४४. एदेसि कम्माणमुदयावलियमेनं मोत्तूणावलियबाहिरहिदीओ अंतरहमागाएदि त्ति वुत्तं होइ । कुदो एवं चेव ? एदेसिमुदयाभावादो । * उवरि समाहिदिअंतरं, हेट्ठा विसमहिदिअंतरं । समाधान-पुरुषवेदकी प्रथम स्थितिसे कुछ कम तीसरा भागप्रमाण है । तीन क्रोधोंके उपशमानेका जितना काल है तत्प्रमाण है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।। इस प्रकार इन दोनों कर्मों की अन्तर्मुहर्तप्रमाण प्रथम स्थितिको स्थापितकर पुनः ऊपर कितनी स्थितियोंको ग्रहणकर अन्तर करता है ऐसी आशंका होनेपर निर्णय करनेके लिए आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं * प्रथम स्थितिसे संख्यातगुणी स्थितियाँ अन्तरके लिए ग्रहण की जाती हैं। ६ १४३. अन्तर करनेके लिए ऊपर संख्यातगुणी स्थितियाँ गुणश्रेणिशीर्षके साथ ग्रहण की जाती हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब अन्यतर वेद और अन्यतर संज्वलनकी जिस प्रकार प्रथम स्थिति अन्तर्मुहूर्तप्रमाण स्थापित करता है उस प्रकार क्या शेष ग्यारह कषाय और आठ नोकषायोंकी भी स्थापित करता है या नहीं स्थापित करता है ऐसी आशंकाका निराकरण करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं * शेष ग्यारह कषायों और आठ नोकषायवेदनीयोंका उदयावलिको छोड़कर अन्तर करता है। $ १४४. इन कोंकी उदयावलिप्रमाण स्थितियोंको छोड़कर आवलिबाह्य स्थितियोंको अन्तरके लिए ग्रहण करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। शंका-ऐसा ही क्यों होता है । समाधान-क्योंकि इन शेष कर्मोंका उदय नहीं पाया जाता। * इन सब कर्मोंका ऊपर समस्थिति अन्तर है, किन्तु नीचे विषम-स्थिति अन्तर है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402