Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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१८४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ संजमलद्ध ६५४. कुदो ? संकिलेसणिबंधणपडिवादट्ठाणादो पुविन्लादो तन्विवरीदसरूवस्सेदस्स जहण्णत्ते वि अणंतगुणभावसिद्धीए णायोववण्णत्तादो । एत्थ 'कम्मभृमियस्से'त्ति वुत्ते पण्णारसकम्मभूमीसु मज्झिमखंडसमुप्पण्णमणुस्सस्स गहणं कायव्वं, कर्मभूमीसु जातः कर्मभूमिज इति तस्य तद्वयपदेशाईत्वात् ।। ___* अकम्मभूमियस्स पडिवजमाणयस्स जहण्णयं संजमट्ठाणमणंतगुणं ।
५५. पुम्विन्लादो असंखेजलोगमेत्तछट्ठाणाणि उवरि गंतूणेदस्स समुप्पत्तीए । को अकम्मभूमिओ णाम ? भरहेरावयविदेहेसु विणीदसण्णिदमझिमखंडं मोत्तूण सेसपंचखंडणिवासी मणुओ एत्थाकम्मभूमिओ ति विवक्खिओ, तेसु धम्म-कम्मपवुत्तीए' असंभवेण तब्भावोववत्तीदो। जइ एवं, कुदो तत्थ संजमग्गहणसंभवो त्ति णासंकणिजं, दिसाविवजयपयदृचक्कवट्टीखंधावारेण सह मज्झिमखंडमागयाणं मिलेच्छरायाणं तत्थ चकवट्टिआदीहि सह जादवेवाहियसंबंधाणं संजमपडिवत्तीए विरोहाभावादो। अथवा तत्कन्यकानां चक्रवर्त्यादिपरिणीतानां गर्भेषत्पन्नमातृपक्षापेक्षया स्वयमकर्मभमिजा इतीह विवक्षिताः। ततो न किंचद्विप्रतिषिद्धं, तथा जातीयकानां दीक्षाहत्वे प्रतिषेधाभावादिति ।
$५४. क्योंकि संक्लेशनिमित्तक पूर्वके प्रतिपातस्थानसे उससे विपरीत स्वरूपबाले इसके जघन्य होनेपर भी अनन्तगुणपनेकी सिद्धि न्याययुक्त है। यहाँपर 'कर्मभूमिजके' ऐसा कहनेपर पन्द्रह कर्मभूमियोंमेंसे मध्यम खण्डमें उत्पन्न हुए मनुष्यका ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि कर्मभूमियोंमें उत्पन्न हुआ कर्मभूमिज है इस प्रकार वह इस संज्ञाके योग्य है।
* उससे संयमको प्राप्त करनेवाले अकर्मभूमिज मनुष्यका जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा है।
५५. क्योंकि पूर्वके संयमस्थानसे असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थान आगे जाकर इस स्थानकी उत्पत्ति हुई है।
शंका-अकर्मभूमिज कौन कहलाता है ?
समाधान-भरत, ऐरावत और विदेह में विनीत संज्ञावाले मध्यम खण्डको छोड़कर शेष पाँच खण्डका निवासी मनुष्य यहाँ पर अकर्मभूमिज इस रूपसे विवक्षित है, क्योंकि उनमें धर्म-कर्मकी प्रवृत्ति असम्भव होनेसे अकर्मभूभिजपनेकी उत्पत्ति बन जाती है।
शंका--यदि ऐसा है तो उनमें संयम ग्रहण कैसे सम्भव है ?
समाधान--ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि दिशाविजयमें प्रवृत्त हुए चक्रवर्तीके स्कन्धावार ( सेना) के साथ जो मध्यम खण्डमें आये हैं तथा चक्रवर्ती आदिके साथ जिन्होंने वैवाहिक सम्बन्ध किया है ऐसे म्लेच्छराजाओंके संयमकी प्राप्तिमें विरोधका अभाव है। अथवा उनकी जो कन्याएं चक्रवर्ती आदि के साथ विवाही गई उनके गर्भसे उत्पन्न हुई सन्तान मातृपक्षकी अपेक्षा स्वयं अकर्मभूमिज है यह यहाँ पर विवक्षित है। इसलिये कुछ निषिद्ध नहीं है, क्योंकि इस प्रकारको जातिवालोंके दीक्षाके योग्य होनेमें प्रतिषेध नहीं है।
१ धर्मकर्मबहिर्भूता इत्यमी म्लेच्छका मता । आदिपु०