Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
गाथा ११५ ] संजमट्ठाणाणं अप्पाबहुअं
१८३ णासंकणिज, मितपतिवादविसयजहण्णसंकिलेसादो वि सम्मत्तपडिवादविसयउकस्ससंकिलेसस्साणतगुणहीणत्तमस्सियूण तहाभावसिद्धीए विरोहाभावादो ।
* तत्सेतुमस्सयं संजमहाणमतगुणं ।
६५१. दो ? पुब्बिन्लादो असंखेजलोगमेत्तछट्ठाणाणि उल्लंघियूणेदस्स समुप्पचिदंसणादो।
* संजमासंजम गच्छमाणस्स जहण्णयं संजमट्ठाणमणंतगुणं ।
७५२. कुदो ? पुग्विन्लादो असंखेजलोगमेत्ताणि छट्ठाणाणि अंतरियूणेदस्स सम्पाददसणादो।
* तस्सेषुपस्सयं संजमट्ठाणमणतगुणं ।
५३. किं कारणं ? पुग्विन्लादो असंखेजलोगमेत्ता० छट्ठाणाणि उल्लंघियूदस्स समुप्पत्तिदसणादो।
-कम्मभूमियस्स पडिबजमाणयस्स जहण्णयं संजमट्ठाणमणंतगुणं ।
शंका-पूर्वके उत्कृष्ट स्थानसे इस जघन्य लब्धिस्थानका अनन्तगुणापना कैसे सम्भव है?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि मिथ्यात्वमें प्रतिपातविषयक जपन्य संक्लेशसे भी सम्यक्त्वमें प्रतिपातविषयक उत्कृष्ट संक्लेशके अनन्तगुणे हीनपनेको देखते हुए उसके उस प्रकार सिद्ध होनेमें विरोधका अभाव है।
* उससे उसीके उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है ।
६५१. क्योंकि पूर्व के जघन्य स्थानसे असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थानोंको उल्लंघन कर इस स्थानकी उत्पत्ति देखी जाती है ।
* उससे संयमासंयमको प्राप्त होनेवाले संयतके जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा है।
६५२. क्योंकि पूर्वके उत्कृष्ट स्थानसे असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थानोंको उल्लंघनकर इस स्थानकी उत्पत्ति देखी जाती है।
* उससे उसीके उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है।
६५३. क्योंकि पूर्वके जघन्य स्थानसे असंख्यात लोकप्रमाण षटस्थानोंको उल्लंघनकर इस स्थानकी उत्पत्ति देखी जाती है।
* उससे संयमको प्राप्त करनेवाले कर्मभूमिज मनुष्यका जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा है।