Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 248
________________ गाथा १२३ ] वंसमोहणीय-उवसामणाणिद्देसो २०५ तहा चेव डिदिधादो अणुभागपादो द्विदिबंधोसरणं गुणसेढिणिज्जरा च । एवं णेदव्वं जाव अणियड्डिअवाए चरिमसमयो त्ति । णवरि अणियट्टिअद्धार संखेज्जेसु भागेसु गदेसु तम्मि उद्देसे को वि विसेससंभवो अत्थि त्ति परूवणमुत्तरसुत्तावयारो___*दसणमोहणीयवसामणा-अणियटिअद्धाए संखेजसु भागेसु गदेसु सम्मत्तस्स असंखजाणं समयपबद्धाणमुदीरणा । २७. पुव्वमसंखेजलोगपडिभागेण सव्वेसिं कम्माणमुदीरणा । एत्थुद्देसे पुण सम्मत्तस्स असंखेजाणं समयपबद्धाणमुदीरणा परिणामपाहम्मेण पवत्तदि त्ति एसो विसेसो पढमसम्मत्तुप्पत्तीए उवसामगस्स परूवणादो । * तवो अंतोमुहुरोण वंसणमोहणीयस्स अंतरं करेदि । $ २८. जदो सम्मत्तस्स असंखेजाणं समयपबद्धाणमुदीरणा हवदि तदो अंतोमुहुत्तेण कालेण एयद्विदिबंध-द्विदिखंडयद्धावच्छिण्णपमाणेण दंसणमोहणीयस्स कम्मस्स गुणसेढिसीसएण सह उवरि संखेजगुणाओ द्विदीओ घेत्तूणंतोमुहुत्तायामेगंतरमेसो करेदि त्ति वुत्तं होइ। एत्थ सम्मत्तस्स पढमट्ठिदिमतोमुहुत्तमेत्तं ठवेयूण सेसाणमुदयावलिपमाणं मोत्तणंतरं करेदि त्ति वत्तव्वं । अंतरहिदीसु उक्कीरिजमाणं पदेसग्गं बंधाभावेण विदियविदीए ण संछुहदि, सव्वमाणेदण सम्मत्तस्स पढमहिदीए वहाँ उसी प्रकार स्थितिघात, अनुभागघात, स्थितिबन्धापसरण और गुणश्रेणिनिर्जरा होती है। इसप्रकार उन्हें अनिवृत्तिकरणके कालके अन्तिम समयतक ले जाना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अनिवृत्तिकरणके कालमेंसे संख्यात बहुभाग व्यतीत होनेपर उस स्थानपर जो कुछ भी विशेष सम्भव है उसका ज्ञान करानेके लिये आगेके सूत्रका अवतार करते हैं * दर्शनमोहनीय-उपशामनासम्बन्धी अनिवृत्तिकरण कालके संख्यात बहुभाग जानेपर सम्यक्त्वके असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा होती है । ६२७. पहले असंख्यात लोकप्रमाण प्रतिभागके अनुसार सब कोंकी उदीरणा होती रही। किन्तु इस स्थानपर परिणामोंके माहात्म्यवश सम्यक्त्वके असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा प्रवृत्त होती है इतना विशेष प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिकी अपेक्षा उपशामकके कहा है। * पश्चात् अन्तमुहूतेकाल द्वारा दर्शनमोहनीयका अन्तर करता है। ६२८. जहाँसे लेकर सम्यक्त्वके असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा होती है वहाँसे लेकर एक स्थितिबन्ध और एक स्थितिकाण्डकघातमें गलनेवाले एक अन्तर्मुहूर्त कालद्वारा दर्शनमोहनीय कर्मके गुणश्रेणिशीर्षके साथ ऊपरकी इससे संख्यातगुणी स्थितियोंको ग्रहणकर अन्तर्मुहूर्त कालद्वारा यह अन्तर करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। यहाँपर सम्यक्त्वकी प्रथम स्थिति अन्तमुहूर्तप्रमाण स्थापितकर तथा शेष मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वकर्मकी उदयावलिको छोड़कर अन्तर करता है यह कहना चाहिए । अन्तरकी स्थितियोंमेंसे उत्कीरण किये जानेवाले प्रदेशपुजको बन्धका अभाव होनेसे

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