Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
गाथा ११५ ]
संजदासंजदस्स सामित्तं
१३९
मेसा अण्णा परूवणा आढविज्जदिति णासंका कायव्वा, संजमा संजमलद्धीए जणुक सभेयभिण्णा सामित्तमप्पाबहुअमुहेण तिव्वमंददापरूवणमेदिस्से परूवire अवारादो । तत्थ सामित्तं णाम जहण्णुक्कस्ससंजमासंजमलद्वीणं को सामिओ होदित्ति संबंधविसेसावहारणं अप्पाबहुअमेदासिं चेव तिव्वमंददाए थोवबहुतपरिक्खा । एत्थ सामित्तप्पाबहुआणं जोणीभूदं परूवणाणिओगद्दारं किण्ण वृत्तं १ ण, तस्साणुत्तसिद्धत्तादो । तम्हा अस्थि जहण्णिया संजमासंजमलद्धी उक्कस्सिया चेदितासि समुत्तिणं काढूण तदो सामित्तमहिकीरदे |
* सामित्तं ।
$ ७३. सुगमं ।
* उक्कस्सिया लद्धी कस्स ?
७४. सुगममेदं पि पुच्छामेत्तवावारादो ।
* संजदासंजदस्स सव्वविसुद्धस्स से काले संजमग्गाहयस्स |
होने पर यह अन्य प्ररूपणा किसलिये आरम्भ की जाती है ?
समाधान - - ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जघन्य और उत्कृष्ट भेद से दो प्रकारकी संयमासंयमलब्धिके स्वामित्व और अल्पबहुत्व द्वारा तीव्र - मन्दताकी प्ररूपणा करने के लिये इस प्ररूपणाका अवतार हुआ है ।
उनमेंसे जघन्य और उत्कृष्ट संयमासंयम लब्धियोंका स्वामी कौन है इसप्रकार सम्बन्ध विशेषका निश्चय करना स्वामित्व है और इन्हींकी तीव्र-मन्दताके अल्पबहुत्वकी परीक्षाका नाम अल्पबहुत्व है ।
शंका—यहाँ पर स्वामित्व और अल्पबहुत्व के योनिभूत प्ररूपणानुयोगद्वारका कथ क्यों नहीं किया ?
समाधान- नहीं, क्योंकि वह अनुक्तसिद्ध है ।
इसलिये जघन्य संयमासंयमलब्धि है और उत्कृष्ट संयमासंयमलब्धि है इस प्रकार उनका समुत्कीर्तन कर तत्पश्चात् स्वामित्वको अधिकृत करते हैं—
* स्वामित्वका अधिकार है ।
९ ७३. यह सूत्र सुगम है ।
* उत्कृष्ट संयमासंयमलब्धि किसके होती है ।
$ ७४. यह सूत्र भी सुगम है, क्योंकि पृच्छामात्र में इसका व्यापार है ।
* अनन्तर समय में संयमको ग्रहण करनेवाले सर्व - विशुद्ध संयतासंयत के होती है ।