Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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* तं जहा ।
$ २ सुगमं ।
जयधवलास हिदे कसायपाहुड़े
* जा चेव संजमासंजमे भणिदा गाहा सा चेव एत्थ वि कायव्वा ।
$ ३. जा चेव पुव्वं संजमा संजमपरूवणाए वण्णिदा गाहा 'लद्धी च संजमा - संजमस्स लद्धी तहा चरित्तस्स' इच्चादिया सा चैव एत्थ वि परूवेयव्वा । किं कारणं १ तिस्से दो वि देसु अत्थाहियारेसु पडिबद्धत्तादो । संपहि एदं गाहासुत्तमवलंबणं काढूण पयदाणिओगद्दारं परूवेमाणो तत्थ ताव अधापवत्तकरणे चदुन्हं पटुवणगाहाणं विहास डुमिदमाह -
[ संजमलद्वी
* चरिमसमय-अधापवत्तकरणे चत्तारि गाहाओ ।
$ ४. एत्थ दोण्णि करणाणि sोंति । तत्थ अधापवत्तकरणस्स चरिमसमए चत्तारि सुत्तगाहाओ पुब्बं विहासियव्वाओ भवंति, अण्णा पयदत्थविसयविसेस - णियाणुपत्तदो त्ति भणिदं होइ ।
* तं जहा ।
९५. काओ ताओ गाहाओ ति पुच्छिदं भवदि ।
* वह जैसे ।
$ २. यह सूत्र सुगम है ।
* जो गाथा संयमासंयम अनुयोगद्वार में कही गई है वही यहाँ पर प्ररूपण करने योग्य हैं ।
$ ३. पहले संयमासंयमकी प्ररूपणा के समय 'लद्धी च संजमासंजमस्स लद्धी तहा चरित्तस्स' इत्यादि जो गाथा कह आये हैं उसीकी यहाँ भी प्ररूपणा करनी चाहिये, क्योंकि वह इन दोनों ही अर्थाधिकारोंमें प्रतिबद्ध है। अब इस गाथासूत्रका अवलम्बन लेकर प्रकृत अनुयोगद्वारका कथन करते हुए वहाँ सर्वप्रथम अधःप्रवृत्तकरण में चार प्रस्थापना गाथाओं का विशेष व्याख्यान करनेके लिये इस सूत्र को कहते हैं
* अधःप्रवृत्तकरण के अन्तिम समयमें चार सूत्रगाथाएँ व्याख्यान करने योग्य हैं ।
$ ४. यहाँ पर दो करण होते हैं । उनमें से अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समय में पहले चार सूत्रगाथाएँ व्याख्यान करने योग्य हैं, अन्यथा प्रकृत अर्थविषयक विशेष निर्णय नहीं बन सकता यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* वे जैसे ।
$ ५. वे गाथाएँ कौन सी हैं यह इस सूत्र द्वारा पूछा गया है ।