Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ११४]
अणियट्टिकरणे कजविसेसपरूवणां सा चेव द्विदिखंडयजहण्णट्ठिदी अप्पणो चरिमसमयत्तेण घेत्तव्वा । किं कारणं ? तदवट्ठाणकालस्स तत्थ पज्जवसाणदंसणादो। वट्टमाणसमयउदयट्टिदी णिरुद्धढिदिखंडयजहण्णहिदीए पढमसमयो होइ । उदयादो विदियट्ठिदी तिस्से चेव विदियसमयो होइ । एवं गंतूण सो चेव द्विदिखंडयजहण्णद्विदी अप्पणो अवट्ठाणकालस्स चरिमसमयो त्ति भण्णदे। तं जाव ण पत्तो ताव हेट्ठा सव्वत्थ असंखेज्जगुणकमेण पदेसविण्णासं कुणदि त्ति एसो एत्थ भावत्थो। संपहि एसा चेव द्विदिखंडयपढमहिदीदो अणंतरहेट्ठिमा हिदी गुणसेढिसीसयं होइ त्ति जाणावणट्ठमिदमाह
* सा चेव हिदी गुणसेढिसीसयं जादं ।
६९८ तकालोकट्टिदसयलदव्वस्स असंखेज्जे भागे घेत्तूण संपहि णिरुद्धढिदिं पज्जवसाणं कादण गुणसेढिणिक्खेवं करेदि त्ति एसा चेव हिदी गुणसेढिसीसयभावेण णिदिट्ठा। एत्तो हेट्ठा सव्वत्थ ओकड्डिददव्वस्स असंखेज्जभागमेव गुणसेढीए णिक्खिवदि, सेसबहुभागे उवरिमगोवुच्छासु समयाविरोहेण णिसिंचदि । एत्तो पाए
ओकड्डिददव्यस्स असंखेज्जे भागे गुणसेढीए णिक्खिविय सेसमसंखेज्जभागमुवरिमद्विदीसु समयाविरोहेण णिसिंचदि त्ति घेत्तव्वं । अदो चेव एत्तो उवरिमाणंतरहिदिखंडयादिहिदीए असंखेज्जगुणहीणं पदेसग्गं णिसिंचदित्ति पदुप्पायणफलमुत्तरसुत्तं-- हिदीए चरिमसमयमपत्तो' ऐसा कहने पर वही स्थितिकाण्डककी जघन्य स्थिति अपने अन्तिम समयरूपसे ग्रहण की जानी चाहिए, क्योंकि उसके अवस्थानकालका वहाँ अन्त देखा जाता है । वर्तमान समयमें प्राप्त उदयस्थिति विवक्षित स्थितिकाण्डककी जघन्य स्थितिका प्रथम समय है । उदयसे दूसरी स्थिति उसीका दूसरा समय है। इस प्रकार जाकर स्थितिकाण्डककी वही जघन्य स्थिति अपने अवस्थानकालका अन्तिम समय कहलाती है। उसे जब तक प्राप्त नहीं किया तब तक नीचे सर्वत्र असंख्यात गुणितक्रमसे प्रदेशविन्यास करता है यह यह भावार्थ है। अब स्थितिकाण्डककी प्रथम स्थितिसे यही अनन्तर अधस्तन स्थिति गुणश्रेणिशीर्ष होता है इस बातका ज्ञान करानेके लिये इस सूत्रको कहते हैं
* वही स्थिति गुणश्रेणिशीर्ष हो गई है।
$९८. तत्काल अपकर्षित किये गये समस्त द्रव्यके असंख्यात बहुभागको ग्रहणकर तत्काल विवक्षित स्थितिको अन्तिम करके गुणश्रेणिमें निक्षेप करता है, इसलिये यही स्थिति गुणश्रेणिशीर्षरूपसे निर्दिष्ट की गई है। इससे नीचे सर्वत्र अपकर्षित किये गये द्रव्यके असंख्यातवें भागको ही गुणश्रेणिमें निक्षिप्त करता है तथा शेष बहुभागको उपरिम गोपुच्छाओंमें समयके अविरोधपूर्वक सिंचित करता है। किन्तु यहाँसे लेकर अपकर्षित किये गये द्रव्यके असंख्यात बहुभागको गुणश्रेणिमें निक्षिप्त करके शेष असंख्यातवें भागको उपरिम स्थितियों में समयके अविरोधपूर्वक निक्षिप्त करता है ऐसा ग्रहण करना चाहिए। इसीलिये इससे उपरिम अनन्तर स्थितिकाण्डककी आदि स्थितिमें असंख्यातगुणे हीन प्रदेशपुजको सिंचित करता है इस बातके प्रतिपादनके लिये आगेके सूत्रको कहते हैं
ता०प्रतौ देदि इति पाठः।