Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ११४ ]
कदकरणिजस्स कज्जविसेसपरूवणा $१०८. एदस्सत्थो-जहा गुणसेढिणिक्खेवादीणं विसेसाणं कदकरणिज-. कालब्भंतरे असंभवो, एवमसंखेजसमयपबद्धाणमुदीरणाए वि तत्थासंभवो चेवे त्ति णासंकियव्वं । किं तु एसो कदकरणिज्जो सगकालब्भंतरे संकिलिट्ठस्सदु' वा विसुज्झदु वा तो वि असंखेजसमयपबद्धमत्ता उदीरणा पडिसमयमसंखेजगुणाए सेढीएं संकिलेसविसोहिणिरवेक्खा जाव समयाहियावलियकदकरणिज्जो ति ताव पवत्तदि चेव, ण पुणो पडिहम्मदि त्ति । कुदो एस णियमो चे ? सहावदो पुवपओगादो च । एसा वुण उदीरणा असंखेजसमयपबद्धमेत्ता सुट्ठ वि बहुगी जादा तत्कालभाविणो उदयस्स असंखेज्जदिभागमेत्ती चेव, ण तत्तो बहुगी जायदि ति पदुप्पायणट्टमुत्तरसुत्तावयारो
* उदयस्स पुण असंखेजदिभागो उक्कस्सिया वि उदीरणा ।
६१०९. सधुक्कस्सिया जा उदीरणा सा हि तत्कालभाविउदयस्स असंखेजदिभागमेती चेव पाण्णारिसि त्ति णिच्छेयत्वा । किं कारणं ? गुणसेढिगोवुच्छामाहप्पादो । एक समय अधिक एक आवलिकाल शेष रहने तक असंख्यातगुणित श्रेणिरूपसे असंख्यात समयप्रबद्धरूप उदीरणा होती है।
$ १०८. इस सूत्रका अर्थ-कृतकृत्य जीवके कालके भीतर जिस प्रकार गुणश्रेणि निक्षेप आदि विशेष असम्भव हैं उसी प्रकार वहाँ असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा भी असम्भव है ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए। किन्तु यह कृतकृत्य जीव अपने कालके भीतर संक्लेशको प्राप्त हो या विशुद्धिको प्राप्त हो तो भी संक्लेश-विशुद्धिनिरपेक्ष असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण उदीरणा प्रति समय असंख्यातगुणित श्रेणिरूपसे कृतकृत्यके कालमें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष रहने तक प्रवृत्त होती ही है, प्रतिघातको नहीं प्राप्त होती।
शंका-यह नियम किस कारणसे है ? समाधान--यह नियम स्वभावसे और पूर्वप्रयोगसे है।
परन्तु असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण यह उदीरणा अत्यन्त बहुत होकर भी उस समय होनेवाले उदयके असंख्यातवें भागप्रमाण ही है, उससे अधिक नहीं होती है इस बातका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रका अवतार करते हैं-- .
* परन्तु उत्कृष्ट उदीरणा भी उदयके असंख्यातवें भागप्रमाण होती है ।
$ १०९. सबसे उत्कृष्ट जो उदीरणा है वह भी तत्काल होनेवाले उदयके असंख्यातवें भागप्रमाण ही है, अन्य प्रकारकी नहीं है ऐसा निश्चय करना चाहिए । . शंका-इसका क्या कारण है ?
१. ताप्रती संकिलिस्सदु इति पाठः।
२. ता०प्रती -मसंखेज्जाए गुणसेढीए ।