Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ११५] एत्थतणगाहावयवत्थपरूवणा
१०७ ६४ संपहि एवमवहारिदसंबंधस्स एदस्स गाहासुत्तस्स अवयवत्थविवरणं कस्सामो। तं जहा—'लद्धी य संजमासंजमस्स' एवं भणिदे संजमासंजमलद्धी गहेयव्वा । का संजमासंजमलद्धी णाम ? हिंसादिदोसाणमयदेसविरइलवखणाणि अणुव्वयाणि देसचारित्तघादीणमपच्चक्खाणकसायाणमुदयाभावेण पडिवञ्जमाणस्स जीवस्स जो विसुद्धिपरिणामो सो संजमासंजमलद्धि त्ति भण्णदे। 'लद्धी तहा चरित्तस्स' एवं भणिदे संजमलद्धी गहेयव्वा । का संजमलद्धी णाम ? पंचमहन्वयपंचसमिदि-तिगुत्तीओ सयलसावज्जविरइलक्खणाओ पडिवज्जमाणस्स जो विसोहिपरिणामो सो संजमलद्धि त्ति विण्णायदे, खओवसमियचरित्तलद्धीए संजमलद्धिववएसावलंबणादो। ओवसमिय-खइयसंजमलद्धीओ एत्थ किण्ण गहिदाओ ? ण, चारित्तमोहोक्सामणाए तक्खवणाए च तासिं पबंधेण परूषणोवलंभादो। तदो
विशेषार्थ शंका यह है कि जब 'लद्धी य संजमासंजमस्स' इत्यादि सूत्रगाथा दो अर्थाधिकारोंमें आई है तो फिर यहाँ एक अर्थाधिकारमें ही उसका निर्देश क्यों किया गया है ? समाधान यह है कि यद्यपि उक्त गाथा दो अर्थाधिकारोंमें आई है, परन्तु दोनों अर्थाधिकारोंका एक साथ कथन नहीं किया जा सकता, अतः जिस अर्थाधिकारका गुणस्थान व्यवस्थानुसार पहले निर्देश किया गया है उसके प्रारम्भमें उक्त गाथाका उल्लेख कर दिया है, अतः वह दोनों अर्थाधिकारों पर लागू हो जाती है।
६४. अब जिसके सम्बन्धका इस प्रकार निश्चय किया है उस गाथासूत्रके अवयवार्थका विवरण करेंगे। यथा-'लद्धी य संजमासंजमस्स' ऐसा कहने पर संयमासंयमलब्धिको ग्रहण करना चाहिए ।
शंका-संयमासंयमलब्धि किसे कहते हैं ?
समाधान—देशचारित्रका घात करनेवाले अप्रत्याख्यानावरण कषायोंके उदयाभावसे हिंसादि दोषोंके एकदेश विरतिलक्षण अणुव्रतोंको प्राप्त होनेवाले जीवके जो विशुद्ध परिणाम होता है उसे संयमासंयमलब्धि कहते हैं।
'लद्धी तहा चरित्तस्स' ऐसा कहने पर संयमलब्धिका ग्रहण करना चाहिए । शंका-संयमलब्धि किसे कहते हैं ?
समाधान-सकल सावद्यकी विरतिलक्षण पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्तियोंको प्राप्त होनेवाले जीवका जो विशुद्धिरूप परिणाम होता है उसे संयमलब्धि जाननी चाहिए, क्योंकि क्षायोपशमिक चारित्रलल्धिकी संयमलब्धि संज्ञा स्वीकार की गई है।
शंका-यहाँ पर औपशमिक संयमलब्धि और क्षायिक संयमलब्धि इन दोनोंको क्यों ग्रहण नहीं किया है ?
समाधान नहीं, क्योंकि चारित्रमोहोपशामना और चारित्रमोहक्षपणाकी उनके स्वतन्त्र
१. ता०प्रती तत्थ इति पाठः ।