Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ११४ 1
एत्थतणपद विसेस प्पाबहुअपरूवणा
१०१
परिभासिदत्थाणं गाहासुत्ताणं पुणो वि अवयवत्थपरामरसमुहेण किंचि विवरणं कायव्वमिदि जाणावेमाणो चुण्णिसुत्तयारो इदमाह -
* एदम्हि दंडए समत्त सुत्तगाहाओ अणुसंवरणेदव्वाओ ।
$_१५४. पुव्वं गाहासुत्ताणि समुवित्तियूण तदत्थविहासणमकाढूण परिभासत्थपरूवणा चैव अप्पा बहुअदंडयपजवसाणा विहासिदा जादा । तदो तम्हि परिभासत्थपरूवणाए विहासिय समत्ताए एहि सुत्तगाहाओ अवयवत्थपरामरसमुहेण अणुसंवदव्वाओ अणुभासिदव्वाओ त्ति भणिदं होइ । तत्थ चउण्हमाइल्लाणं गाहाणमणुसंवण्णणं सुगममिदि तमुल्लंघियूण पंचमीए सुत्त गाहाए किंचि वित्थारत्थमुहेणाणुसंवण्णणं कुणमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
* 'संखेज्जा च मणुस्सेसु खीणमोहा सहस्ससो नियमा' त्ति एदिस्से गाहाए अट्ठ अणियोगद्दाराणि । तं जहा - संतपरूवणा दव्वपमाणं खेत्तं फोसणं कालो अंतरं भागाभागो अप्पाबहुअं च ।
$ १५५. एदीए गाहाए खीणदंसणमोहणीयाणं जीवाणं चदुगदिसंबंधेण स्वरूपके निर्देश द्वारा ही परिभाषा की गई थी ऐसे गाथासूत्रोंका फिर भी अवयवार्थ के परामर्शद्वारा कुछ विवरण करना चाहिए, इस बातका ज्ञान कराते हुए चूर्णिसूत्रकार इस सूत्र को कहते हैं
* इस दण्डकके समाप्त होने पर सूत्रगाथाओंका विशेष व्याख्यान करना चाहिए |
$ १५४. पहले गाथासूत्रोंका समुत्कीर्तन करके उनके अर्थको विभाषा न करके परिभाषारूप अर्थकी प्ररूपणा ही अल्पबहुत्वदण्डकके अन्त तक विशेषरूपसे की। इसलिए वहाँ परिभाषारूप अर्थ की प्ररूपणाकी विभाषाके समाप्त होने पर अब सूत्रगाथाओंका अवयवार्थके परामर्शपूर्वक 'अणुसंवण्णेदव्वाओ' अर्थात् विशेष व्याख्यान करना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है। उनमेंसे प्रारम्भकी चार गाथाओंका विशेष व्याख्यान सुगम है, इसलिए उसे उल्लंघन कर पाँचवीं सूत्रगाथाका कुछ विस्तारपूर्वक विशेष व्याख्यान करते हुए आगे के सूत्रको कहते हैं
* 'संखेज्जा च मणुस्सेसु खीणमोहा सहस्ससो नियमा' इस पाँचवीं गाथाके अनुसार आठ अनुयोगद्वार हैं । यथा - सत्प्ररूपणा, द्रव्यप्रमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, मागाभाग और अल्पबहुत्व ।
$ १५५. इस गाथामें जिनका दर्शनमोहनीय कर्म क्षीण हो गया है ऐसे जीवोंके चारों
१. ता०प्रतौ अवयवपरामरसमुहेण इति पाठः ।
ता० प्रती पुव्व इति पाठः ।