Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ दंसणमोहक्खवणा 5 १४९. किं कारणं ? कदकरणिजपढमसमयट्ठिदिबंधस्स अंतोकोडाकोडिपमाणस्स गहणादो ३० ।
* तेसिं चेव उक्कस्सओ द्विदिबंधो संखेजगुणो । $ १५०. किं कारणं ? अपुव्वकरणपढमसमयट्ठिदिबंधस्स गहणादो ३१ । * दंसणमोहणीयवजाणं जहएणयं द्विदिसंतकम्मं संखेनगुणं ।
६ १५१. कुदो ? सम्माइट्ठीणमुक्कस्सद्विदिबंधादो वि जहण्णट्ठिदिसंतकम्मस्स चरितमोहक्खवणादो अण्णत्थ तहाभावेणावट्ठाणणियमदंसणादो ३२ ।
* तेसिं चेव उक्कस्सयं ट्ठिदिसंतकम्मं संखेजगुणं ।
$ १५२. किं कारणं ? अपुव्वकरणपढमसमयविसए सव्वेसिं कम्माणमंतोकोडाकोडिमेत्तुक्कस्सट्ठिदिसंतकम्मस्स अपत्तघादस्स घादिदावसेसादो पुविल्लजहण्णद्विदिसंतकम्मादो तहाभावसिद्धीए बाहाणुवलंभादो ३३ ।
११५३. एवमेदमप्पाबहुअदंडयं समाणिय संपहि पुव्वं सरूवणिदेसमेत्तेणेव
$ १४९. क्योंकि कृतकृत्यसम्यग्दृष्टिके प्रथम समयमें होनेवाला स्थितिबन्ध अन्तःकोड़ाकोड़ीप्रमाण ग्रहण किया गया है ३० ।
* उससे उन्हींका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है।
$ १५०. क्योंकि इस सूत्रद्वारा अपूर्वकरणके प्रथम समयमें होनेवाले स्थितिबन्धका ग्रहण किया है ३१ ।
* उससे दर्शनमोहनीयके सिवाय शेष कर्मोंका जघन्य स्थितिसत्कर्म संख्यातगुणा है।
$ १५१. क्योंकि चारित्रमोहनीयकी क्षपणाके सिवाय अन्यत्र सम्यग्दृष्टियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धसे भी जघन्य स्थितिसत्कर्मके अवस्थानका नियम सूत्रोक्तप्रकारसे देखा जाता है ३२ ।
* उससे उन्हींका उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म संख्यातगुणा है।
$ १५२. क्योंकि अपूर्वकरणके प्रथम समयमें सभी कर्मोंका जो अन्तकोड़ाकोड़ीप्रमाण उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म होता है उसका अभी घात नहीं हुआ है, अतः घात होकर शेष बचे हुए पूर्वके जघन्य स्थितिसत्कर्मसे इसके उक्त प्रकारसे सिद्ध होनेमें कोई बाधा नहीं पाई जाती ३३॥
$ १५३. इस प्रकार इस अल्पबहुत्वदण्डकको समाप्त करके अब पूर्वमें जिनके अर्थकी मात्र