Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ११४ ] अणिय टिकरणे कज्जविसेसपरूवणा तदित्थगोवुच्छाए णिसिंचिय ततो उवरि सव्वत्थ विसेसहीणकमेण एयगोवुच्छासेढीए णिक्खिवदि जाव हिदिखंड्यचरिमसमयमइच्छावणावलियमेत्तेणापत्तो' त्ति ।
१००. एवमेत्थ दिजमाणदव्वस्स तिणि सेढीओ जादाओ । दीसमाणं पुण जाव संपहियगुणसेढिसीसयं ताव असंखेजगुणाए सेढीए दीसइ । तत्तो उवरिमाणंतराए एकिस्से द्विदीए असंखेजगुणहीणं होदूण तत्तो परं जाव गलिदसेसपोराणगुणसेढिसीसयमुल्लंघिय पढमवारमवहिदसरूवेण कदगुणसेढिसीसयं ति ताव असंखेजगुणसेढीए चेव दीसमाणं होइ । तत्तो पहुडि जाव चरिममवद्विदगुणसेढिसीसयं ताव विसेसाहियं चेव भवदि । किं कारणमिदि चे ? द्विदिखंडयजहण्णट्ठिदीए असंखेज्जगुणहीणं दादण पुणो उवरि विसेसहीणं कादण संपहि दिण्णदव्वस्स पुव्विल्लसंचयगोवुच्छेहितो असंखेजगुणहीणत्तेण दीसमाणं पडि पहाणत्ताभावादो। तदो पुन्विल्लसंचयाणुसारेणेव तत्थ दीसमाणं होदि ति गहेयव्वं । तत्तो उवरिम सम्वत्थ गोवुच्छासेढीए विसेसहीणमेव दीक्षमाणं होदि त्ति घेत्तव्वं, तत्थ पयारंतरासंभवादो । . * विदियसमए जमुक्कीरदि पदेसग्गं तं पि एदेणेव कमेण-दिजदि ।
समस्त आयामसे भाजित कर जो एक भाग प्राप्त हो उसे विशेष अधिक करके वहाँकी गोपुच्छामें सिंचितकर उससे ऊपर सर्वत्र स्थितिकाण्डकका अन्तिम समय अतिस्थापनावलिमात्रसे नहीं प्राप्त हो वहाँ तक विशेष हीनक्रमसे एक गोपुच्छाणिरूपसे निक्षिप्त करता है।
$ १००. इस प्रकार यहाँ पर दीयमान द्रव्यकी तीन श्रेणियाँ हो गई हैं। परन्तु दृश्यमान द्रव्य तो वर्तमान गणश्रेणिके शीर्षके प्राप्त होने तक असंख्यातगणित श्रेणिरूपसे दिखलाई देता है । उससे उपरिम अनन्तर एक स्थितिमें असंख्यातगणा हीन होकर उससे आगे गलित शेष प्राचीन गुणश्रेणिशीर्षको उल्लंघन कर प्रथम वार अवस्थितरूपसे किये गये गुणश्रेणि शीर्षके प्राप्त होने तक विशेष अधिक ही होता है।
शंका-इसका कारण क्या है ?
समाधान-क्योंकि स्थितिकाण्डककी जघन्य स्थितिमें असंख्यातगुणा हीन देकर पुनः ऊपर विशेष हीन करके इस समय दिया गया द्रव्य पूर्व में संचयरूप गोपुच्छासे असंख्यातगुणा हीन है, इसलिये उसकी दृश्यमान द्रव्यके प्रति प्रधानताका अभाव है । इसलिये पिछले संचयके अनुसार ही वहाँपर दृश्यमान द्रव्य होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिए।
उससे ऊपर सर्वत्र गोपुच्छाश्रेणिमें विशेष हीन ही दृश्यमान द्रव्य होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि वहाँ दूसरा प्रकार सम्भव नहीं है ।
* दूसरे समयमें जो प्रदेशपुञ्ज उत्कीरित किया जाता है उसे भी इसी क्रमसे
१. ता०प्रतौ मेत्तेण पत्तो इति पाठः ।