Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे [दसणमोहक्खवणा ६३. पलिदोवमट्ठिदिसंतकम्मादो पुव्वं सव्वत्थेवापुवकरणपढमसमयप्पहुडि पलिदोवमस्स संखेज्जदिमागमेत्तो चेव द्विदिखंडयायामो होइ । एण्हि पुण पलिदोवमे ओलुत्ते पलिदोवममेत्ते ट्ठिदिसंतकम्मे अवसिट्टे द्विदिकंडयपमाणं तस्स संखेज्जा भागायामं होइ । कुदो एवं चे ? सहावदो चेव तत्थ तहाभावेण द्विदिखंडयघादपवुत्तीए सुत्तवलेण सुणिच्छिदत्तादो। एत्तो उवरि पि सव्वत्थेव सेसस्य संखेज्जे भागे घेत्तूण द्विदिखंडयं णिवत्तेदि जाव णिप्पच्छिमो पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो परिसिट्ठो त्ति । संपहि एदस्सेवात्थस्स विसेसपरूवणहमिदमाह
* तदो सेसस्त संखेजा भागा आगाइदा
६४. गयत्थमेदं सुत्तं ।।
* एवं द्विदिखंडयसहस्सेसु गदेसु दूरावकिट्टी पलिदोवमस्स संखेन भागे द्विदिसंतकम्मे सेसे तदो सेसस्स असंखेज्जा भागा आगाइदा ।
६६५. एवं पलिदोवमठिदिसंतकम्मप्पहुडि सेस-सेसस्स संखेज्जे भागे घेत्तूण संख्यातवें भागप्रमाण प्रत्येक स्थितिकाण्डक होता है। तथा पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्त्वके अवशिष्ट रहने पर आगे स्थितिकाण्डक के लिए पल्योपमके संख्यात बहुभागको ग्रहण किया।
६३. पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्म रहनेसे पूर्व सर्वत्र ही अपूर्वकरणके प्रथम समयकर स्थितिकाण्डकका आयाम पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण ही होता है। परन्तु यहाँपर 'पलिदोवमे ओलुत्ते' अर्थात् दर्शनमोहनीयका स्थितिसत्कर्म पल्योपमप्रमाण अवशिष्ट रहने पर उसका आयाम पल्योपमके संख्यात बहुभागप्रमाण होता है।
शंका-ऐसा किस कारणसे होता है ?
समाधान-इस सूत्रके बलसे निश्चित होता है कि वहाँपर उस प्रकारसे स्थितिकाण्डकघातकी प्रवृत्ति स्वभानसे ही होती है। तथा इसके आगे भी पल्योपमका अन्तिम संख्यात गाँ भाग शेप रहने तक सर्वत्र ही जो स्थिति सत्कर्ष शेष रहे उसके संख्यात बहुभागको ग्रहण कर स्थितिकाण्डक बनता है। अब इसी अर्थकी विशेषताका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं___ * उसके बाद जो स्थितिसत्कर्म शेष रहे उसके संख्यात बहुभागको स्थितिकाण्डक के लिये ग्रहण किया।
६४. यह सूत्र गतार्थ है।
* इस प्रकार हजागें स्थितिकाण्डकोंके व्यतीत होनेपर तथा पन्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिसत्कर्मके शेष रहनेपर दुरापकृष्टि होती है। उसके बाद शेष स्थिति सत्कर्मके असंख्यात बहुभागको स्थितिकाण्डकके लिए ग्रहण किया।।
६५ इन प्रार पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्मसे लेकर उत्तरोत्तर शेष रहनेवाले १. ता०प्रती ओमुलुत्ते इति पाठः ।