Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [सणमोहक्खवणा ६६. संपहि एवंविहदूरावकिट्टिसण्णिदट्ठिदिसंतकम्मे सेसे एत्तो प्पहुडि सेसस्स असंखेजे भागे द्विदिखंडयसरूवेणागाएदि त्ति एदमत्थविसेसं जाणाविय एत्तो एदीए परूवणाए असंखेजगुणहीणद्विदिखंडएसु बहुसु णिवदमाणेसु केत्तियं अद्धाणमुवरि गंतूण तत्थुद्देसे विसेसंतरसंभवपदुप्पायणट्टमुत्तरसुत्तमोइण्णं___ * एवं पलिदोवमस्स असंखेजदिभागिगेसु बहुएसु द्विदिखंडयसहस्सेसु गदेसु तदो सम्मत्तस्स असंखेजाणं समयपबद्धाणमुदीरणा ।।
६६७. दूरावकिट्टीदो हेट्ठा संखेज्जसहस्समेत्ताणि असंखेज्जगुणहाणिद्विदिखंडयाणि ओसरियण मिच्छत्तचरिमट्ठिदिखंडयं च संखेज्जसहस्सद्विदिखंडएहिं ण उदाहरण पल्योपमका प्रमाण उत्कृष्ट संख्यात जघन्य परीतासंख्यात
२०००० २००००:४५००० पल्योपमका संख्यातवाँ भाग, प्रथम भेदरूप दूरापकृष्टि ५०००-१-४९९९ ,
" दूसरे " " ४९९९-१-४९९८
___ तीसरे , " इसप्रकार उत्तरोत्तर एक-एक स्थितिसत्कर्म विकल्प कम करता हुआ
२०००० : ५= ४०००० पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिसत्कर्म विकल्पके प्राप्त होनेके पूर्व ४००१ स्थितिसत्कर्म विकल्पके प्राप्त होने तक कम करे। यहाँ ५००० प्रमाण प्रथम स्थितिसत्कर्म विकल्पसे लेकर ४००१ प्रमाण अन्तिम स्थितिसत्कर्म विकल्प तक ये १००० स्थितिसत्कर्मविकल्प पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण होनेसे दूरापकृष्टिके भेद भी उतने ही प्राप्त होते हैं ऐसा टीकाकारका अभिप्राय है। . इनमेंसे कोई एक विकल्परूप दूरापकृष्टि अनिवृत्तिकरणमें ली गई है। वह कौनसी ली गई है ? इसका समाधान करते हुए उन्होंने बतलाया है कि इनमेंसे जिस भेदरूप जिनेन्द्रदेवने देखी है वह ली गई है। शेष कथन सुगम है।
६६६. अब इस प्रकारके दूरापकृष्टिसंज्ञक स्थितिसत्कर्मके शेष रहनेपर यहाँसे लेकर शेषके असंख्यात बहुभागप्रमाण स्थितिसत्कर्मको स्थितिकाण्डकरूपसे ग्रहण करता है। इसप्रकार इस अर्थविशेषका ज्ञान करा कर आगे इस प्ररूपणाके अनुसार बहुतसे असंख्यात गुणहीन स्थितिकाण्डकोंके पतित होनेपर कितना ही अध्वान ऊपर जाकर उस स्थानपर विशेष अन्तर सम्भव है उसका कथन करनेके लिये आगेका सूत्र आया है
* इस प्रकार पन्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाणवाले बहुत हजार स्थितिकाण्डकोंके व्यतीत होनेपर वहाँसे लेकर सम्यक्त्वके असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा होती है।
६६७. दूरापकृष्टिसे नीचे संख्यात हजार असंख्यात गुणहानिवाले स्थितिकाण्डकोंका अपसरण कर संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंके द्वारा मिथ्यात्वके अन्तिम स्थितिकाण्डकको
१. ता० प्रती खंडए हिं ( एण्हि ) इति पाठः ।