Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [दसणमोहक्खवणा चरिमसमयमणुकिण्णं ति, उदयावलियबाहिरे गलिदसेसगुणसेढिणिक्खेवं पडि सव्वत्थ मेदाणुवलंभादो। एदं च सव्यमत्थविसेसं मणम्मि कादूण 'णत्थि गुणगारपराबत्ती' इदि वुत्तं । एदम्मि णिरुद्धकाले दिज्जमाणस्य दिस्समाणस्स वा पदेसग्गस्स अणंतरपरूविदो चेव गुणगारकमो, णत्थि तत्थ अण्णरिसेण कमेण गुणगारपवुत्ति त्ति जं वत्तं होइ । गुणगारो णाम किरियाभेदो। सो णत्थि त्ति वा जाणावणटुं 'णत्थि गुणगारपरावत्ती' इदि सुत्ते णिद्दिढं।
5.८३. एवं ताव हेट्ठिमद्धाणे गुणसेढिणिक्खेवादिविसओ किरियाभेदो पत्थि त्ति पदुप्पाइय संपहि एत्तो पहुडि द्विदि-अणुभागखंडएसु गुणसेढिणिक्खेवे च किरियाभेदो अस्थि त्ति जाणावणसुवरिमं पबंधमाह
* जाधे अट्ठवासहिदिगं संतकम् समत्तस्मता पाए सम्मत्तस्स अणुभागस्स अणु समय-ओवणा । एसो ताव एक किरियापारिवत्तो । अन्तिम समयके अनुत्कीर्ण होने तक द्वितीयादि समयोंमें भी प्ररूपणा करनी चाहिए, क्योंकि उदयावलिके बाहर गलित शेप गुणश्रेणिनिक्षेपके प्रति सर्वत्र भेद नहीं उपलब्ध होता । इस सब अर्थविशेषको मनमें करके 'णत्थि गुणगारपरावत्ती' यह वचन कहा है । इस विवक्षित कालमें दीयमान और दृश्यमान प्रदेशपुञ्जका अनन्तर कहा गया ही गुणकारक्रम है, वहाँ अन्य प्रकारसे गुणकारकी प्रवृत्ति नहीं होती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । गुणकार क्रियाभेदको कहते हैं। वह नहीं है, अथवा इस बातका ज्ञान करानेके लिये ‘णस्थि गुणगारपरावत्ती' यह वचन सूत्रमें कहा है।
विशेषार्थ-यहाँ अपूर्वकरणके प्रथम सगयसे लेकर अनिवृत्तिकरणमें सम्यग्मिथ्यात्वके अन्तिम स्थितिकाण्डककी द्विचरमफालिका जिस समय पतन होता है उस समय तक प्रत्येक समयमें गुणश्रेणि और उससे यथासम्भव उपरिम स्थितियों में अपकर्षित द्रव्यका किस प्रकार निक्षेप होता है इस तथ्यका स्पष्टरूपसे खुलासा किया गया है। विशेष स्पष्टीकरण मूलमें किया ही है। यहाँ यह तथ्य ध्यानमें रखना चाहिए कि उपरितन जिस स्थितिमेसे प्रदेशपुजका अपकर्षण विवक्षित हो उस स्थितिसे नीचे अतिस्थापनावलिको छोड़कर उदयावलिसे उपरितन प्रथम स्थितिसे लेकर अतिस्थापनावलिसे पूर्वतक अन्य सब स्थितियों में उसका यथायोग्य निक्षेप होता है।
८३. इस प्रकार सर्व प्रथम नीचेके अध्वानमें गुणश्रेणिनिक्षपादिविषयक क्रियाभेद नहीं है इसका कथन कर अब इससे आगे स्थितिकाण्डकों, अनुगकाण्डकों और गुणश्रेणिनिक्षेपमें क्रियाभेद है इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेके प्रवन्धको कहते हैं
* जिस समय सम्यक्त्वका आठ वर्षप्रमाण स्थितिसत्कर्म होता है उस समयसे लेकर सम्यक्त्वके अनुभागका प्रत्येक समयमें अपवर्तन होता है। सर्वप्रथम यह एक क्रियापरावर्तन है।