Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [दसणमोहक्खवणा अट्ठवस्सेगट्ठिदिदव्वं पलिदोवमस्सासंखेज्जदिभागेण खंडेणेगखंडमेत्तं चेव होदि, अट्ठवस्समेरणिसेगाणमोकड्डणभागहारपडिभागियत्तादो। पुणो तस्स वि असंखेजदिभागमेत्तं चेव हेट्ठा गुणसेढिम्हि णिसिंचदि । सेसअसंखेज्जे भागे संशहियगुणसेढिसीसयप्पहुडि उवरिमगोवुच्छेसु समयाविरोहेण णिसिंचदि त्ति । एदेण कारणेणासंखेज्जगुणं ण जादं, किंतु विसेसाहियमेव दीसमाणदव्वं होइ त्ति णिच्छेयव्वं । होतं पि असंखेज्जभागुत्तरं चेव, णत्थि अण्णो वियप्पो ।
९०. संपहि एदस्सेवासंखेज्जभागाहियत्तस्स फुटीकरण?मेसा परूवणा कीरदे । तं जहा--हेट्ठिमसमयगुणसेढिसीसयदव्वमिच्छामो त्ति दिवड्डगुणहाणिगणिदमेगं समयपबद्धं ठविय तस्स अंतोमुहुत्तूणट्ठवस्समेत्तो भागहारो ठवेयव्वो। एवं ठविदे पुब्बिल्लसमयगुणसेढिसीसयदव्यमागच्छइ । संपहियगुणसेढिसीसयदव्वे इच्छिजमाणे एवं चेव दव्वमेयगोवुच्छविसेसहीणं ठविय पुणो एण्हिमोकड्डिददव्वस्स बहुभागे अट्ठवस्सेहि अंतोमुहुत्तणेहिं खंडिय तत्थेयखंडमेत्तेणेदं दव्यमब्भहियं कादव्वं । एदं च अहियदव्वं पुग्विल्लगुणसेढिसीसयम्मि समहियगोवुच्छविसेसादो तत्थेव एण्हिं पदिदासंखेज्जसमय
शंका-इसका क्या कारण है ?
समाधान-कहते हैं-इस समय अपकर्षितकर ग्रहण किया गया समस्त द्रव्य भी मिलकर आठ वर्षसम्बन्धी एक स्थितिके द्रव्यको पल्योपमके असंख्यातवें भागसे भाजितकर जो एक भाग लब्ध आचे उतना होता है, क्योंकि आठ वर्षप्रमाण निषेकोंमें अपकर्षण भागहारका भाग देनेपर जो लब्ध आवे तत्प्रमाण है। पुनः उसके भी असंख्यातवें भागप्रमाण द्रव्यको हो नीचे गुणश्रेणिमें सिंचित करता है। शेष असंख्यात बहुभागको इस समयके गुणश्रेणिशीर्षसे उपरिम गोपुच्छाओंमें आगममें प्ररूपित विधिके अनुसार सिंचित करता है। इस कारणसे पहलेके गुणश्रेणिशीर्षसे इस समयका गुणश्रेणिशीर्ष असंख्यातगुणा नहीं हुआ, किन्तु दृश्यमान द्रव्य विशेषाधिक ही है ऐसा निश्चय करना चाहिए। विशेषाधिक होता हुआ भी असंख्यातवाँ भाग ही अधिक है, अन्य विकल्प नहीं है।
९०. अब इसी असंख्यातवें भाग अधिकको स्पष्ट करनेके लिये यह प्ररूपणा करते हैं । यथा-अधस्तन समयके गुणोणिशीर्षका द्रव्य लाना चाहते हैं, इसलिये डेढ़ गुणहानिगुणित एक समयप्रबद्धको स्थापितकर उसका अन्तर्मुहूर्त कम आठ वर्षप्रमाण भागहार स्थापित करना चाहिए । इस प्रकार स्थापित करनेपर पिछले समयके गण णिशीर्षका द्रव्य आता है । इस समयके गुणश्रेणिशीर्षके द्रव्यके लानेकी इच्छा होनेपर एक गोपुच्छविशेषसे हीन इसी द्रव्यको स्थापितकर इस समय अपकर्षित द्रव्यके बहुभागको अन्तर्मुहूर्त कम आठ वर्षों के द्वारा भाजितकर वहाँ प्राप्त एक भागमात्र द्रव्यसे इसे अधिक करना चाहिए। और यह अधिक द्रव्य, पिछले गुणश्रेणिशीर्ष में जो गोपुच्छविशेष अधिक है उससे तथा उसीमें अर्थात् पिछले गुणश्रेणिशीर्ष में इस समय प्राप्त हुआ जो असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण गुण१. ताप्रती हेछिमगुणसेढि- इति पाठः ।