Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ११४]
अणियट्टिकरणे कज्जविसेसपरूवणा संखेजाणि ट्ठिदिखंडयस्साणिगदाणि । तदो दूरावकिट्टी पलिदोवमस्स संखेजदिभागे संतकम्मे सेसे । तदो द्विदिखंडयं सेसस्स असंखेजा भागा। एवं ताव सेसस्स असंखेज्जा भागा जाव मिच्छत्त खविदं ति । सम्मामिच्छत्त पि खतस्स सेसस्स असंखेजा भागा जाव सम्मामिच्छत्तपि खविजमाणं खविद, संछुब्भमाणं संछुद्ध। ताधे चेव सम्मत्तस्स संतकम्ममट्ठवस्सहिदिगं जादं।
६७८. सुगममेदं पुव्युत्तत्थोवसंहारसुत्तं । णवरि एत्थ 'सम्मामिच्छत्तं खविजमाणं खविदमिदि' वुत्ते तस्स हिदि-अणुभागा घादिजमाणा णिरवसेसं घादिदा त्ति अत्थो घेत्तव्यो। संछुभमाणयं संगुद्धं इदि वुत्ते परपयडिसंकमेण संछुब्भमाणं सम्मामिच्छत्तपदेसग्गं सव्यसंकमेणुदयावलियवजं सव्वमेव सम्मत्तस्सुवरि संछुद्धमिदि अपुणरुत्तभावेण अत्थो वक्खाणेयव्यो ।
प्रमाणवाले ही स्थितिकाण्डक चालू रहते हैं। पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्मके अवशिष्ट रहने पर पल्योपमके संख्यात बहुभागप्रमाण स्थितिसत्कर्म घातके लिये ग्रहण किया। उसके व्यतीत होनेपर शेष रही स्थितिसत्कर्मका संख्यात बहुभाग घातके लिये ग्रहण किया। इसप्रकार संख्यात हजार स्थितिकाण्डक व्यतीत हुए । इसके बाद पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिसत्कर्मके शेष रहनेपर दूराषकृष्टि संज्ञावाली स्थिति प्राप्त हुई। पुनः वहाँसे स्थितिकाण्डकका प्रमाण शेष रहे स्थितिसत्कर्मके असंख्यात बहुभागप्रमाण प्राप्त हुआ। इसप्रकार मिथ्यात्वके क्षय होने तक उत्तरोत्तर शेष रहे स्थितिसत्कर्मके असंख्यात बहुभागप्रमाण स्थितिकाण्डक प्राप्त हुआ। सम्यग्मिथ्यात्वका भी क्षय करते हुए उत्तरोत्तर जो स्थितिसत्कर्म शेष रहा उसके असंख्यात बहुभागको स्थितिकाण्डकरूपसे घातके लिए तब तक ग्रहण किया जब जाकर क्षयको प्राप्त होनेवाले सम्यग्मिथ्यात्वका भी क्षय कर दिया और संक्रमित होनेवाले उसका संक्रमण कर दिया। तभी सम्यक्त्वका स्थितिसत्कर्म आठ वर्षप्रमाण हो गया।
६ ७८. पूर्वोक्त अथका उपसंहार करनेवाला यह सूत्र सुगम है। इतनी विशेषता है कि इस सूत्रमें 'सम्मामिच्छत्तं खविजमाणं खविदं' ऐसा कहनेपर सम्यग्मिथ्यात्वके घाते जानेवाले स्थिति और अनुभाग पूरी तरहसे घातित किये गये ऐसा अर्थ यहाँ ग्रहण करना चाहिए : संछुमपाणचं संबुद्धं' ऐसा कहनेपर परप्रकृतिसंक्रमरूपसे संक्रमित होनेवाले सम्यगमिथ्यात्वके प्रदेशापुंजको सर्वसंक्रमके द्वारा उदयावलिके सिवाय समग्र ही सम्यक्त्वके ऊपर संक्रमित किया इस प्रकार अधुनरुक्तरूपसे अथेका व्याख्यान करना चाहिए ।