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तदुभय का अर्थ सूत्र और अर्थ तो होता ही हैं । परंतु उसका महत्त्वपूर्ण दूसरा भी अर्थ होता हैं : जीवन में उतारना । जैसा जाना वैसा जीना वह तदुभय हैं ।
श्रुतज्ञान पढ़ते हो तब भगवान ही सामने दिखने चाहिए, इसीलिए मैं यह बात कह रहा हूं। हमने तो भगवान और भगवानका नाम, भगवान और भगवानके आगम अलग कर दिये हैं। भगवान इसी तरह ही आपके पास आयेंगे, देहधारी बनकर नहीं आयेंगे, जैसे जैनेतरों में आते हैं ।
___ 'नाम ग्रहंता आवी मिले, मन भीतर भगवान' ऐसा मानविजयजीने यों ही नहीं कहा । नाम बोलते समय आपकी चेतना भगवन्मय बनी याने भगवान आ ही गये समझें ।
पू.आ. हेमचन्द्रसागरसूरिजी : उपयोग (जागृति) के बिना भी भगवान का नाम ले सकते हैं न ?
पूज्यश्री : उस समय भगवान नहीं आते ऐसा समझ लो । भगवान के बिना कुछ याद न हों, मात्र भगवान का ही स्मरण हों तो भगवान आते ही हैं ।
यह तो आप मनमें १७ वस्तुएं रखकर भगवान को याद करते हो ! भगवान कहां से आयेंगे ? ___ मुनि भाग्येशविजयजी : भगवानकी फी बहुत ऊंची हैं ।
पूज्यश्री : हां... हैं ही, नहीं तो बहुत लोग भगवान को प्राप्त कर लें । उवसग्गहरं की कुछ गाथाएं इसीलिए ही संहरण करनी पडी ना ? भगवान की स्तुति करते लोग अपने संसारी कार्य भी कराने लगे । शंखेश्वरमें आज यही चलता हैं न ?
आगमके एकेक अक्षरमें भगवान दिखते हों तो अभ्यास छोड़ देंगे ? आगममें रस नहीं पड़ेगा ? फोन नं. आप घूमाओ तो शायद उस व्यक्ति के साथ संपर्क न हो, वैसा बन भी सकता है, परंतु आगम के अक्षरों से भगवान न मिलें, ऐसा नहीं ही होगा । शर्त मात्र इतनी : आपका मन भगवन्मय चाहिए, मेरा मन भी कभी-कभी ही भगवन्मय बन सकता हैं ।
विक्षिप्त अवस्था में ही मन लगभग ज्यादा रहता हैं । हमें तो हमारे नामकी, हमारे अहंकी ज्यादा चिंता हैं । भगवान
(८0000000000oooooo कहे कलापूर्णसूरि - ४)