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-मरूदेवा माताप्रथम केवलज्ञान ऋषभदेव को हुआ है और मोक्ष पहले मरूदेवा माता पधारी हैं। ऋषभदेव अथवा आदिनाथ दादा की माताजी मरूदेवा । शास्त्र कहता है कि अठ्ठारह क्रोडा कोडी सागरोपम वर्ष में कोई मोक्ष न जा सका था। माता मरुदेवा सर्वप्रथम कालानुसार मोक्ष पधारी। उनके बाद असंख्य जीव केवली हुए और मोक्ष गये इसलिए ऐसा कहा जाता है कि मोक्ष के द्वार मारूदेवा ने खोलें।
__ मेरा पुत्र ऋषभ जो बड़े लाड-प्यार से पला है, वह हस्ती आदि वाहन पर घूमता था, जो अब नंगे पाँव विहार करता है, जो दिव्य आहार का भोजन करता था वह भिक्षा मांगकर अब भोजन करता है । कहाँ उसकी पूर्वस्थिति और कहाँ वर्तमान स्थिति! ऐसा दुःख वह कैसे सहन करता होगा? ऐसे विचारों से मातृहृदय रोया करता था और पुत्र विरह से खूब कल्पांत करने से आँख पर झिल्लियाँ चढ़ आई थी। । एक दिन प्रात:काल विनयी पौत्र भरत चक्रवर्ती दादी को नमस्कार करने आये
और नमस्कार करके माता ने समाचार पूछे । माता ने पुत्रविरह की बात कही। भरतजी ने दादी को आश्वासन देते हुए कहा, 'आपके पुत्र के प्रभाव से फिलहाल शिकारी प्राणी भी उपद्रव करते नहीं है। उन्होंने कर्मरूपी शत्रुओं का नाश करके दुःसह्य परिषद सहे हैं परंतु अब वे तीनों जगत के नाथ बने हैं, केवलज्ञान पाया है। आपको उनकी आजकी रिद्धि-सिद्धि देखनी हो तो चलो - ऐसा समझाकर दादीमाँ को हाथी पर बिठाकर, प्रभु को दिखाने ले गये जो हाल ही अयोध्या पधारे थे। प्रभु के समवसरण को दूर से देखकर भरतजी ने मरूदेवा माता को कहा, यह समवसरण आपके पुत्र के लिए देवों ने रचा है। यह जय जय शब्द उच्चारित हो रहा है वह आपके पुत्र के लिए देव बोल रहे हैं। उनके दर्शन से हर्षित देव मेघ गर्जना जैसे सिंहनाद कर रहे हैं।'
. भरत महाराज का ऐसा कथन सुनकर मरूदेवी अति आनंदित हो उठीं और आनंदाश्रु से दृष्टि में पड़ी झिल्लियाँ दूर हो गईं। ऋषभदेव की तीर्थंकररूपी लक्ष्मी अपनी आँखों से निहार कर उसमें तन्मय होकर तत्काल क्षपक श्रेणी में चढ़कर आठों कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान पाया, उसी समय आयुष्य पूर्ण हो जाने से मोक्ष पधारी।
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जिन शासन के चमकते हीरे . १६