Book Title: Jinshasan Ke Chamakte Hire
Author(s): Varjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
Publisher: Varjivandas Vadilal Shah

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Page 321
________________ अब तो वह स्वयं को सर्वज्ञ मानने लगा और मनवाने लगा। प्रभुमहावीर को केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद अशाता वेदनीय कर्म का प्रबल उदय हुआ; यह आश्चर्यकारी घटना निम्नानुसार घटी। एक बार भगवान महावीर देव श्रावस्ती नगरी में पधारे । वहाँ गौतम गणधर ने जो सुना था उसके बारे में भगवंत को पूछा, 'हे भगवन्! यह गोशाला अपने आपको अन्य जिन के रूप में परिचित करवाता है। तो यह दूसरा जिन कौन है? दूसरा जिन तो हो ही नहीं सकता है न?' भगवंत ने कहा, 'हे गौतम! वह खरा जिन नहीं है, परंतु मंखलि और सुभद्रा का पुत्र है। पूर्व वह मेरा शिष्य बनकर रहा था। वह गो-बहुल ब्राह्मण की गौशाला में पैदा हुआ सो गौशाला' कहा जाता है। भवितव्यता के योग से मुझसे तेजोलेश्या की विद्या सीखा है । अष्टांग निमित्त वगैरह ज्ञात करके वह स्वयं का जिन के रूप में परिचय देता है। यह बात धीरे धीरे समस्त श्रावस्ती नगरी में फैल गयी। यह जानकर गोशाला भडक उठा। उसे ऐसा लगा, महावीर क्या धंधा लेकर बैठा है? मुझे ही बदनाम करना?' इस प्रकार उसका गुस्सा बहुत बढ़ गया। उतने में गोशाला ने प्रभु के एक साधू आनंदमुनि को गोचरी के लिए जाते हुए देखा। वह चिल्लाकर बोला, 'ओ आनंद! खडा रह । तेरे गुरु को जाकर कहना कि अधिक गड़बड़ न करें, उलटी सुलटी कोई बात मेरे लिए न कहे कि मैं उनका शिष्य बनकर रहा था और उनसे विद्या सीखा था। ऐसा कहकर मुझे बदनाम न करें। अन्यथा मैं उसे और तुम सबको जलाकर राख कर दूंगा।' यह सुनकर आनंद मुनि घबराये। उन्होंने आकर भगवंत को बात की। भगवंत ने आनंद मुनि को कहा, 'तूं गौतम गणधर आदि को कह दे कि सब साधू इधरउधर हो जावे। गोशाला आ रहा है, कोई उसके साथ बात करना मत।' __इतने में झुंझलाता हुआ, छटपटाता हुआ गोशाला वहाँ आ पहुंचा और बोलने लगा, 'हे महावीर! तू झूठा है, तू जिन नहीं है, मैं ही जिन हूँ। तू मेरी मंखलिपुत्र के रूप में पिछान करवाता है परंतु वह मंखलिपुत्र तो मर गया है। वह अन्य था, मैं अन्य हूँ। उसके शरीर को परिषह सहन करने योग्य समझकर मैंने उसमें प्रवेश किया है। सो अब तू गड़बड बंद कर दे। गोशाले के शरीर में प्रवेश करनेवाला मैं जिन हूँ, सर्वज्ञ हूँ।' भगवान बोले, 'हे गोशालक! तूं ऐसा झूठ बोलकर किसलिये अपनेआपको जिन शासन के चमकते हीरे • २९२

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