Book Title: Jinshasan Ke Chamakte Hire
Author(s): Varjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
Publisher: Varjivandas Vadilal Shah

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Page 323
________________ गुरु के दो उत्तम शिष्यों को मैंने तेजोलेश्या से जला डाला। और अंत में मेरी आत्मा का दहन करने के लिए मैंने प्रभु पर भी तेजोलेश्या छोड़ी। मुझे धिक्कार है । अरे ! थोडे दिन के लिए लम्बे काल नरकवास में निवास हो वैसा अनार्यकार्य मैंने किया। ऐसे ऐसे पश्चात्ताप के वचन बोलते हुए सब शिष्यों को पास बुलाकर कहा, 'हे शिष्यों ! सूनों । मैं अर्हत नहीं हूँ व केवली भी नहीं हूँ। मैं तो मंखली का पुत्र और श्री वीरप्रभु का शिष्य गौशाला हूँ। मैंने इतने लम्बे काल तक दंभ से मेरी आत्मा और लोगों को ठगा है। मेरी अपनी ही तेजोलेश्या से स्वयं जलता मैं छद्मस्थरूप में मृत्यु पाऊँगा। मेरे मरण के बाद मेरे शरीर के चरणों को बांधकर मुझे पूरे नगर में घसीटना | मरे हुए श्वान की भाँति खींचते हुए मेरे मुख पर थूकना और पूरी नगरी में चौक, चबूतरे और गली गली में ऐसी उद्घोषणा करना कि लोगों को दंभ से ठगनेवाला, मुनि का द्रोह करनेवाला, जिन न होते हुए भी अपने को जिन कहलानेवाला, दोष का ही निधान, गुरु द्रोही और गुरु का ही विनाश चाहनेवाला मंखली का पुत्र यह गोशाला है, वह जिन नहीं है। जिनेश्वर भगवान तो सर्वज्ञ, करुणानिधि हितोपदेशक श्री वीरप्रभु हैं । यह गोशाला वृथा अभिमानी है । ' इस प्रकार करते हुए, उपस्थित सर्व को सौगन्ध देकर गोशाला व्यथा से अत्यंत पीडा सहन करते हुए मृत्यु पा गया। उसके शिष्यों ने लज्जा से उसके शव को कुम्हारन के घर से बाहर निकालकर गोशाला के अंतिम वचनों के अनुसार रस्सी से पैर बांधकर उद्घोषणापूर्वक घसीटा और उसके उपासकों ने बड़ी समृद्धि से उसका अग्नि संस्कार किया । श्री वीरप्रभु को तत्पश्चात् श्री गौतम ने पूछा, 'हे स्वामी ! गोशाला ने कौनसी गति पायी?' प्रभु बोले, 'अच्यूत देवलोक में गया ।' गौतम ने पुन: पूछा, 'प्रभु ! ऐसा उन्मार्गी और अकार्य करनेवाला दुरात्मा गोशाला देवता कैसे बना? इससे मुझे बड़ा आश्चर्य होता है।' प्रभु ने उत्तर दिया, 'हे गौतम! अंत समय में अपने दुष्ट कृत्य की निंदा करता है, उससे देवत्व दूर नहीं है, गोशाला ने भी वैसा किया था। गौतम hi अधिक पूछताछ पर प्रभु ने कहा, 'उसे करे हुए कर्म अन्य जन्मो में अधोगामी होकर भुगतने पडेंगे।' अपने गुरु का द्रोह कभी भी न करना - यह पूरी कहानी का सारांश है । जिन शासन के चमकते हीरे • २९४

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