Book Title: Jinshasan Ke Chamakte Hire
Author(s): Varjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
Publisher: Varjivandas Vadilal Shah

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Page 335
________________ को उपदेश नहीं दिया जा सकता। शायद दो अक्षर कहे तो नशे में चकचूर गुरु कुछ सुने ऐसे न थे। धीरे धीरे शिष्य गुरु को छोड़कर अन्य आचार्यो के पास चले गये। उन्हें अपना चारित्र संभालना था। परंतु एक शिष्य पंथक मुनि' ने गुरु को किसी भी प्रकार से पुनः सन्मार्ग पर लाने की आशा के कारण गुरु का त्याग न किया वह मार्ग भूले गुरु से सटा रहा। उनकी सेवा सुश्रूषा जारी रखी। 'गुरु परम उपकारी है। इस समय उनका पापोदय है। परंतु ऐसे समय पर गुरु का त्याग करना ठीक नहीं है। एक दिन जरूर उनकी आत्मा जागेगी और पुनः संयम में स्थिर हो जायेंगे। इस प्रकार कई दिन बीत गये। पंथक मुनि गुरू की वयावच्य बराबर करते रहे। इस तरह चातुर्मास पूर्ण हुआ। शैलकाचार्य की स्थिति तो वही बनी रही, खाना पीना और सोना।' चौमासी प्रतिक्रमण का समय हुआ। पंथक मुनिवर ने समयोचित प्रतिक्रमण प्रारंभ किया। प्रतिक्रमण की क्रिया में जब गुरू महाराज से क्षमापन की क्रिया आयी तो पंथक मुनि ने धीरे से गुरुदेव के चरणों पर हाथ रखा। शैलकाचार्य चीडा उठे : 'क्यों मुझे जगाया। परेशान क्यों करता है?' ___'गुरुदेव! क्षमा चाहता हूँ। मैं अविनीत हूँ। मैंने आपकी निन्द्रा में बाधा डाली। आज - चौमासी चौदहवी का प्रतिक्रमण करते हुए क्षमापना के लिये आपके चरणों पर हाथ रखा है।' । चौमासी प्रतिक्रमण का नाम सुनकर गुरुदेव चौंके, 'है? आज चौमासी चौदहवीं। चातुर्मास पूर्ण हो गया।' राजर्षि खड़े हो गये। पंथक मुनि से क्षमापना की और शीघ्र ही प्रतिक्रमण करने बैठ गये। आत्मसाक्षी से खूब आत्मनिंदा की और प्रतिक्रमण किया। दूसरे दिन राजा मंडुक को कहकर शैलकाचार्यने पंथक मुनि के साथ विहार किया। पंथक मुनि बड़े प्रसन्न हुए। मार्ग भूले गुरूदेव पुनः मोक्षमार्ग पर चढ़ गये। विहार करते करते ४९९ शिष्य धीरे धीरे शैलकाचार्य के पास आ गये। पुनः पुनः एक दूसरे से क्षमापना की। सबने पंथक मुनि को लाख लाख अभिनंदन दिये। भले प्रकार से संयम की आराधना की, शैलकाचार्य शत्रुजय गिरिराज पर पहुँचे। एक माह का अनशन किया। सर्व कर्मो का क्षय किया। सबने निर्वाण प्राप्त किया। धन्य प्रमाद त्यागी गुरू, धन्य शिष्य पंथक... जिन शासन के चमकते हीरे • ३०६

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