Book Title: Jinshasan Ke Chamakte Hire
Author(s): Varjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
Publisher: Varjivandas Vadilal Shah

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Page 346
________________ पिता को कारागृह में डाला हैं ।' उस समय कुणिक ने एक पुरानी बात याद करके पूछा, 'माता ! मेरे पिता ने मुझे गुड़ के मोदक भेजे और हल्ल विहल्ल को शक्कर के भेजे, उसका क्या कारण?' तब चेलण्णा ने उत्तर दिया, 'हे मूढ ! तूं तेरे पिता का द्वेषी है - ऐसा जानकर मुझे अप्रिय था सो गुड़ के मोदक तो मैने भेजे थे।' इस प्रकार स्पष्टता होने पर कुणिक बोला, 'अहा ! मुझे धिक्कार है, अविचारी कार्य मैंने किया है, परंतु अमानत वापिस लौटाने की भाँति मैं मेरे पिता का राज्य वापिस लौटा देता हूँ।' ऐसा कहकर आधा भोजन छोड़ा और धात्री को पुत्र सौंपकर पिता को मुक्त करने के लिए एक लोहदण्ड बेडी को तोडने के लिए उठाकर दौडा । परंतु श्रेणिक के समीप पहुँचने से पूर्व श्रेणिक ने 'इस लोहदण्ड से मेरा घात करेगा' ऐसा मानकर अपनी जिह्वा पर तालपुट विष रखकर प्राण छोड दिया। तत्पश्चात् चक्रवर्ती बनने के लिए कई खूंखार युद्ध लडने के बाद किसीकी बात न सुनने पर स्वयं को तेरहवाँ चक्रवती बताते हुए कृतपाल देव ने उसे जलाकर भस्म कर डाला और कोणिक मृत्यु पाकर छठ्ठे नर्क में गया । अद्य में सफलं गात्रं जिनेन्द्र तव दर्शनात् दर्शनात् दुरित ध्वंसी, वन्दनात् वांछितप्रदः पुजनात् पूरक: श्रीणां, जिनः साक्षात् सुरद्रुमः पाताले यानि विभ्वानि यानि विभ्वानि भूतले स्वर्गेपियानि विभ्वानि तानि वन्दे निरन्तरम् अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम, तस्मात् कारूण्य भावेन, रक्ष रक्ष जिनेश्वर जिने भक्ति जिने भक्ति, जिने भक्ति दिने दिने सदा मेऽस्तु सदा मेऽस्तु सदा मेऽस्तु भवे भवे ॐ कार बिंदुसंयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिनः कामदं मोक्षदं चैव, ॐकाराय नमो नमः जिन शासन के चमकते हीरे • ३१७

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