Book Title: Jinshasan Ke Chamakte Hire
Author(s): Varjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
Publisher: Varjivandas Vadilal Shah

View full book text
Previous | Next

Page 351
________________ पीछे प्रभु महावीर की वंदना करने जा रहे थे। मार्ग में शुभ भावना से उन पांचों को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। सर्वज्ञ प्रभु महावीर स्वामी जहाँ बिराजमान थे वहाँ आकर प्रभु की प्रदक्षिणा की और गौतम स्वामी ने प्रणाम किये, तीर्थंकर को झुककर वे पांचों केवली की पर्षदा में जले। तब गौतम ने कहा, 'प्रभु की वंदना करो।' प्रभु बोले, 'गौतम! केवली की आशातना मत करो।' तत्काल गौतम ने मिथ्या दुष्कृत देकर उन पाँचों से क्षमापना की। . इसके बाद गौतम मुनि खेद पाकर सोचने लगे कि क्या मुझे केवलज्ञान उत्पन्न नहीं होगा? क्या मैं इस भव में सिद्ध नहीं बनूंगा।' ऐसा सोचते सोचते प्रभु ने देशना में एक बार कहा हुआ याद आया कि 'जो अष्टापद पर अपनी लब्धि से जाकर वहाँ स्थित जिनेश्वर की वन्दना करके एक रात्रि वहाँ रहे वह उसी भव में सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।' ऐसा याद आते ही गौतम स्वामी ने तत्काल अष्टापद पर स्थित जिनबिंबो के दर्शन करने जाने की इच्छा व्यक्त की। वहाँ भविष्य में तापसों को प्रतिबोध होनेवाला है। यह जानकर प्रभु ने गौतम को अष्टापद तीर्थं, तीर्थतरो की वन्दना के लिए जाने की आज्ञा दी। इससे गौतम बड़े हर्षित हुए और चरणलब्धि से वायु समान वेग से क्षण भर में अष्टापद के समीप आ पहुंचे। इसी अरसे में कौडिन्य, दत्त और सेवाल वगैरह पन्द्रहसों तपस्वी अष्टापद के मोक्ष का हेतु सुनकर उस गिरि पर चढने आये थे। उनमें पांचसों तपस्वियों ने चतुर्थ तप करके आद्रकंदादि का पारणा करने पर भी अष्टापद की प्रथम सीढी तक आये थे। दूसरे पांचसौं तापस छठु तप करके सूखे कंदापि का पारणा करके दूसरी सीढी तक पहुंचे थे। तीसरे पांच सो तापस अठ्ठम का तप करके सूखी काई का पारणा करके तीसरी सीढी तक पहुंचे थे। वहाँ से ऊँचे चढने के लिये अशक्त थे। उन तीनों के समूह प्रथम, द्वितीय और तृतीय सीढी पर लटक रहे थे। इतने में सुवर्ण समान कांतिवाले और पुष्ट आकृतिवाले गौतम को आते हुए उन्होंने देखा। उनको देखकर वे आपस में बात करने लगे कि हम कृश हो चुके हैं फिर भी यहाँ से आगे चढ़ सकते नहीं हैं, तो यह स्थूल शरीरवाला मुनि कैसे चढ़ सकेगा? इस तरह वे बातचीत कर रहे थे कि गौतम स्वामी सूर्य किरण का आलंबन लेकर उस महागिरि पर चढ़ गये और पल भर में देव की भाँति उनसे अदृश्य हो गये। तत्पश्चात् वे परस्पर कहने लगे, 'इन महर्षि के पास कोई महाशक्ति जिन शासन के चमकते हीरे . ३२०

Loading...

Page Navigation
1 ... 349 350 351 352 353 354 355 356