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-श्रीकुणिक
श्रेणिक पुत्र कुणिक ने श्रेणिक राजा को बंदी बनाकर कैद कर रखा था और रोजाना दो समय सौं सौं कोड़े मरवाता था।
उग्रता से राज्य करते कुणिक को पद्मावती नामक रानी से एक पुत्र हुआ। उसका उदायी नाम रखा। इस पुत्र पर कुणिक को बेहद प्रेम था।
एक बार पुत्र वत्सल कुणिक अपने बाँये रान पर पुत्र को बिठाकर भोजन कर रहा था। उसने अर्ध भोजन किया था कि बालक ने मत्रोत्सर्ग किया, मूत्र की धारा भोजन थाल में गिरी। पुत्र के पेशाब की गति में भंग न हो ऐसा सोचकर कुणिक ने अपनी जाँघ को हिलाया भी नहीं। मूत्र से बिगड़ी थाली को दूर न करके पुत्र वात्सल्य के कारण थोड़ा खराब अन्न दूर करके उसी थाली में वह पुनः भोजन करने लगा। उस समय उसकी माता चेल्लणा वहाँ बैठी थी। उसको कुणिक ने पूछा, 'हे माता! ऐसा किसीको अपना पुत्र प्रिय था? या होगा?' चेल्लणा बोली : 'अरे पापी! अरे राजकुलाधम! तूं तेरे पिता को इससे भी अधिक प्रिय था, क्या तं नही जानता है? मुझे दुष्ट दोहद होने पर तूं जन्मा है और इसलिये ही तूं अपने पिता का बैरी है। सगर्भा स्त्रीयों को गर्भानुसार ही दोहद होता है। गर्भ में रहा तं, तेरे पिता का बैरी है - ऐसा जानकर मैंने पति कल्याण की इच्छा से गर्भपात कराने के प्रयत्न भी किये थे यद्यपि तेरा उन औषधों से नाश होने के बजाय तूं पुष्ट हुआ था। 'बलवान् पुरुषों को सर्व वस्तु पथ्य होती है।' तेरे पिता ने 'मैं पुत्र का मुख कब देखू?-' ऐसी आशा से मेरे बरे दोहद को भी पूर्ण किया था। तत्पश्चात् तेरा जन्म हुआ तब तुझे पिता का बैरी मानकर मैंने तेरा त्याग किया उस समय मुर्गी के काटने पर तेरी एक ऊंगलि पक गयी थी। तूझे अत्यंत पीड़ा हो रही थी। उस समय तेरी ऊँगलि को भी तेरे पिता अपने मुख में रखते थे, और जब तक मुख में रखेत तब तक तेरा दुःख टलता था। इस कारण उतना समय तूं न रोता और शांत रहता। अरे अधम! इस प्रकार तेरे जिस पिता ने महाकष्ट सहकर लालन पालन किया था उन्हें तूने बदले में - उपकारी
जिन शासन के चमकते हीरे • ३१६