Book Title: Jinshasan Ke Chamakte Hire
Author(s): Varjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
Publisher: Varjivandas Vadilal Shah

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Page 347
________________ १०८ -गुरूगौतम स्वामी मगध देश में गोबर नामक गाँव में वसुभूति नामक एक गौतम गोत्री ब्राह्मण रहता था। उसे पृथ्वी नामक स्त्री से इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति नामक तीन पुत्र हुए। अपावा नगरी में सोमिल नामक एक धनाढ्य ब्राह्मण ने यज्ञ कर्म में विचक्षण ऐसे इन तीन गौतम गौत्री ब्राह्मणों और उस समय के ब्राह्मणों में महाज्ञानी माने जाते अन्य आठ द्विजों को भी यज्ञ करने बुलाया था। सबसे बड़े इन्द्रभूति गौतम गोत्री होने से गौतम नाम से भी पहचाने जाते थे। ___ यज्ञ चल रहा था, उस समय वीर प्रभु की वंदना की इच्छा से आते देवताओं को देखकर गौतम ने अन्य ब्राह्मणों को कहा, 'इस यज्ञ का प्रभाव देखो! हमारे मंत्रों से आमंत्रित देवता प्रत्यक्ष यहाँ यज्ञ में आ रहे हैं।' उस समय यज्ञ का बाडा छोड़कर देवताओं को समवसरण में जाता देखकर लोग कहने लगे : 'हे नगरजनों! सर्वज्ञ प्रभु उद्यान में पधारे हैं। उनकी वंदना करने के लिये ये देवता हर्ष से जा रहे हैं। सर्वज्ञ' ऐसे अक्षर सुनते ही मानो किसीने वज्रपात किया हो उस प्रकार इन्द्रभूति कोप करेले बोले, 'अरे! धिक्कार! धिक्कार! मरु देश के मनुष्य जिस प्रकार आम्र छोडकर करील के पास जावे वैसे लोग मुझे छोड़कर उस पाखंडी के पास जाते हैं। क्या मेरे से अधिक कोई अन्य सर्वज्ञ है?'शेर के सामने अन्य कोई पराक्रमी होता ही नहीं। कदापि मनुष्य तो मूर्ख होने से उनके पास जाएं तो भले जाएँ मगर ये देवता क्यों जाते हैं? इससे उस पाखंडी का दंभ कुछ महान लगता है।' परंतु जैसा वह सर्वज्ञ होगा वैसे ही ये देवता लगते हैं, क्योंकि जैसा यज्ञ होता है वैसा ही बलि दिया जाता है। अब इन देवों और मनुष्यों के इतने में तो समक्ष मैं उसकी सर्वज्ञता का गर्व हर लूं। इस प्रकार अहंकार से बोलता हुआ गौतम पाँचसौं शिष्यों के साथ समवसरण में सुरनरों से घिरे हुए श्री वीर प्रभु जहाँ बिराजमान थे वहाँ आ पहुंचा। प्रभु की समृद्धि और चमकता तेल देखकर आश्चर्य पाकर इन्द्रभूति बोल उठा, 'यह क्या ?' इतने में तो 'हे गोतम! इन्द्रभूति आपका स्वागत है।' जगद्गुरु ने अमृत जैसी मधुर वाणी में कहा। यह सुनकर जिन शासन के चमकते हीरे • ३१८

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