Book Title: Jinshasan Ke Chamakte Hire
Author(s): Varjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
Publisher: Varjivandas Vadilal Shah

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Page 344
________________ की भाँति ऊडद का एक पिण्ड छिपाकर ले जाती और श्रेणिक वह पिण्ड दिव्य भोजन समझकर खाता और प्राणरक्षा करता। कुछ समय के बाद माता चेल्लणा के कुछ स्पष्टीकरण से कुणिक को सद्बुद्धि आयी और 'ओह! अविचारी कार्य करनेवाला मैं, मुझे धिक्कार हो! अब मैं किसीकी अमानत लौटाते हो उस प्रकार अपने पिता को राज्य पुनः सौंप दूं।' इस प्रकार अर्ध भोजन करते हुए उठा - पूरा भोजन करने भी न रूका और पिता को पहनायी हुई लोहे की बेडियाँ तोड़ने के लिए एक लोहदण्ड उठाकर, श्रेणिक के पास जाने के लिए दौडा।' श्रेणिक के समीप रखे गये पहेरेदार पूर्व परिचित होने के कारण श्रेणिक के पास दोड़ते हुए आये और कुणिक को लोहदण्ड के साथ आता हुआ देखकर बोले, 'अरे राजन् ! साक्षात् यमराजा की भाँति लोहदण्ड धारण करके आपका पुत्र उतावला होकर आ रहा है। वह क्या करेगा? हम जानते नहीं हैं।' यह सुनकर श्रेणिक ने सोचा, 'आज तो वह जरूर मेरे प्राण लेगा। क्योंकि आज तक तो वह हाथ में कोडा लेकर आता था और आज वह लोहण्ड लेकर आ रहा है। और मैं ज्ञात भी नहीं कर सकता कि वह मुझे कैसी कडी मार से मार डालेगा! सो वह यहाँ आ पहुँचे उससे पूर्व ही मुझे मरण की शरण में जाना योग्य है। ऐसा सोचकर उसने तत्काल तालपुट विष जिह्वा पर रख दिया, जिससे उसके प्राण तत्काल निकल गये। कुणिक नजदीक आया तो वहाँ उसने पिता को मृत्यु पाया हुआ देखा। इस कारण उसने तत्काल छाती कूटकर पुकारते हुए कहा, 'हे पिता। मैं ऐसे पापकर्म से इस पृथ्वी पर अद्वितीय पापी बना हूँ। और 'मेरे पिता से क्षमापना करूं' ऐसा मेरा मनोरथ - भी पूर्ण नहीं हुआ है। इसलिये मैं अति पापी हूँ। पिताजी। आपके प्रसाद का वचन तो दूर रहा और मै आपका तिरस्कार भरा वचन भी सुन न सक। बड़ा दुर्देव बीच मे आकार मेरी बाधा बना। कैसे भी करके मुझे मरना ही योग्य है।' इस प्रकार अति शोक ग्रस्त बना कुणिक मरने के लिये तैयार हुआ, परंतु मंत्रियों ने उसे समझाया सो उसने श्रेणिक के देह का अग्निसंस्कार किया। महाराजा श्रेणिक की आत्मा तीसरी नर्क में पहुँची। कालक्रमानुसार अगली चौबीसी में वह प्रथम तीर्थंकर होगी। जिन शासन के चमकते हीरे • ३१५ .

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