________________
नमस्कार कर रहे हैं वे मुनि कैसे महान चारित्रशील होंगे। ऐसे विचार से अपने आवास पर मुनि को लेजाकर बहुमानपूर्वक मोदक की भिक्षा अर्पण की। मुनि प्रसन्न होकर स्वस्थान लौटे और प्रभु को पूछा : 'आज मुझे गोचरी मिली है। क्या मेरे अंतराय कर्मों का क्षय हो गया? श्री सर्वज्ञ प्रभु ने उत्तर दिया, 'नहीं... अभी अंतराय कर्म बाकी ही हैं। आज तो गोचरी मिली है वह तो कृष्ण वासुदेव की लब्धि से मिली है। श्रीकृष्ण तुम्हें नमस्कार कर रहे थे - वह देखकर इस आहार के लिए सेठ ने तुझे-प्रतिलाभित किया है।'
ढंढण मुनि जो कि राग आदि से रहित बन चुके है, ऐसा सुनकर सोचने लगे, यह पर लब्धि आहार है जो मुझे स्वीकार नहीं है। इसलिए भोजन का उपयोग किये बिना ही मोदक आदि आहार योग्य भूमि में गाड़ने गये। उस समय 'अहो! जीवों के पूर्वोपार्जित कर्मों का क्षय करना बहुत मुश्किल है। ऐसे कर्म करते हुए मेरी आत्मा ने विचार क्यों न किया' - ऐसा सोचते सोचते ध्यान मग्न हो गये और उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ।
इस दुनिया की रंगभूमि... इस दुनिया की रंगभूमि पर, कोई बने मोर तो, बने कोई मोरनी सब आये हैं करने खेल। आये हैं...(१) आये हैं.... कोई बने राजा तो बने कोई भिखारी, कोई खाये खाजा तो किसी का पेट खाली, किसी को मिले महल तो किसी को जेल...(२) आये हैं.... कोई बने साधु तो कोई रंगरागी, माया-मोह में कोई रंगरागी या कोई भोगी, किसीको मिले न सच्चा खेल...(३) आये हैं... कोई जाये आज तो कोई जाये कल, कोई के भाल पर तिलक तो कोई को कलंक किसीका अंत सुखी तो किसीका अंत दुःखी
पूरा हो जायेगा खेल...(४) आये हैं...
जिन शासन के चमकते हीरे • ३७