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लेकर मृत्यु पाकर, देवलोक के सुख का अनुभव करके यहाँ आया हूँ। पूर्व मैंने वनस्पति जीव को अभयदान दिया था तो अब इस भव में उसकी हिंसा करनी मेरे योग्य नहीं है।' ऐसा सोचकर वह प्रतिज्ञाबद्ध हुआ। पश्चात् उसने कंदादिक का भक्षण करनेवाले तापसों को भी उसका पच्चक्खाण कराया।
___ 'बकरे, ऊँट, हाथी और दूसरे अन्य पशु वगैरह के भय में लत्ताए, प्रमुख वनस्पतियों का तूने भली प्रकार से भक्षण किया है, तो अब श्रावकपन को प्राप्त करके हे जीव ! उन वनस्पतियों वगैरह का भली प्रकार से रक्षण कर, जिससे धर्मरुचि मुनींद्र की तरह उत्तम फल प्राप्त हो सके।'
उपदेशात्मक दोहे
• सच्चाई छुप नही सकती, कभी बनावट के उसुलों से।
खुशबु आ नही सकती, कभी कागज के फूलों से॥ पाप छिपायो ना छिपे, जो छिपे तो बडे भाग।
दाबी डूबी ना रहे, रुई लपेटी आग ॥ • बहुत बीती थोडी रही, अब तो सुरत संभार।
पर भव निश्चित चालणो, वृथा जन्म मत हार ॥ • धन दे तन को राखीये, तन दे राखीये लाज।
धन तन लाज दे, एक धर्म के काज ॥ ..सिंह गमन पुरुष वचन, केल फले एक बार।
तिरिया तेल मोती नीर, चढे न दूजी बार ॥
जिन शासन के चमकते हीरे • १७८