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गुरुदेव ने कहा : 'सत्त्व श्रेष्ठ गुण है । जिस मनुष्य में सत्त्व होता है उसमें सब गुण आ जाते हैं।'
'इस सत्त्व गुण के बारे में मुझे विस्तार से समझाने की कृपा करें।' कुमारपाल ने बिनती की।
हेमचन्द्राचार्य समझाते हैं : - सत्त्वशील पुरुष दुःख में भी धर्म छोड़ता नहीं है।
वह ली हुई प्रतिज्ञा का दृढ पालन करता है। वह दुःख में हिंमत हारता नहीं है और निराश नहीं हो जाता। उसके लिये कोई काम असंभव नहीं है। वे कभी 'हाय हाय' या अरेरे ऐसे कायरतासूचक शब्द बोलते नहीं है।
वर्षों तक दुःख सहन करने का वह धीरज रखता हैं। - वह राजा हो तो प्रजा की रक्षा के लिये लगातार प्रयत्न करता रहता है, जरूरत · पड़ने पर अपना बलिदान भी दे देते हैं।'
इस प्रकार परोक्षरूप में आचार्यदेव ने कुमारपाल के भावि जीवन के बारे में निर्देश दिया और कहा, "देखना कुमार, तेरे सिर पर दुःख का पहाड़ टूटने वाला है, तब तू हिम्मत हारना नहीं और तेरे 'सत्त्व' का परिचय कराना।"
कुमारपाल यह बोध सुनकर, नमस्कार करके अपने स्थान पर चल दिया।
हेमचन्द्रसूरीजी को खयाल आ गया था कि कुमारपाल सिद्धराज के मृत्यु बाद राजा बने, यह बात सिद्धराज को जरा भी जची नही है । और इसी कारण वह डंकीला राजा कुमारपाल को मार डालने का प्रयत्न अवश्य करेगा।
__ आखिर में बूढे होते जाते सिद्धराज ने कुमारपाल को मारने के लिए जाल बिछा दिया था। कुमारपाल भी यह बात समझता था। वह सावधान था। समय पहचान कर वतन छोड़ दिया और लुक-छिपकर घूमने लगा। कभी खाना मिलता है तो कभी भूखा भी रहता हैं । भटकते हुए कभी पानी की भी व्यवस्था नहीं हो पाती।
इस प्रकार वह एक बार खंभात आ पहुँचा। श्री हेमचन्द्राचार्य खंभात में है यह जानकर वह उपाश्रय में महाराजश्री की वंदना करने गया, वंदना की।
आचार्यश्रीने कुमारपाल को पहचान लिया। धर्मलाभ के आशीर्वाद दिये। कुमारपाल ने कहा, हे आचार्यदेव! आप तो ज्ञानी है? राजा के घर में जन्म
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जिन शासन के चमकते हीरे • २५८