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जंबूकुमार शयनगृह में गया। वहाँ कामदेव से पीडित उन स्त्रियों के साथ विकाररहित वैराग्य की बातें करने लगा। उस समय उन स्त्रियों ने स्नेहवृद्धि हो ऐसी एक एक वार्ता हरेक स्त्री ने कही। उसके उत्तर में कुमार ने वैराग्य उत्पन्न हो ऐसी आठ वार्ताएँ कहीं। यह वार्ताएँ चल रही थी तो उस समय पांचसौं चोर सहित प्रभव नामक राजपूत अवस्वापिनी और तालोद्घाटिनी (ताले खुले ऐसी) विद्या के प्रभाव से, जंबूकुमार के महल में आकर चोरी करने लगा। इन सबको किसी देवताने स्थंभित किया इसलिये प्रभव चोर ने सोचा, 'कि इन महात्मा से ही मैं परिवार सहित स्थंभित हुआ हूँ।' ऐसा सोचकर सब स्त्रियों को उत्तर-प्रत्युत्तर देकर समझाते हुए जंबूकुमार के सामने प्रकट होकर उसने कहा, 'हे महात्मा ! मैं इस दुष्ट व्यापार, चोरी करने के काम से निवृत्त हुआ हूँ। इसलिए मुझसे ये दो विद्याएँ लेलो और आपकी स्थंभिनी विद्या मुझे दो।' यह सुनकर जंबूकुमार बोले, 'मैं तो प्रात:काल में ही इन सांसारिक बंधनों का त्याग करके श्री सुधर्मा स्वामी से दीक्षा लेनेवाला हूँ। इसलिये मुझे तेरी विद्या की कोई जरूरत नहीं है। और हे भद्र! मैंने तुझे स्थंभित नहीं किया। परंतु किसी देवता ने मेरे पर की भक्ति से प्रेरित होकर तुझे स्थंभित करा होगा। और भव की वृद्धि करे ऐसी विद्याएँ मैं लेता या देता नहीं हूँ परंतु समस्त अर्थ को साधनेवाली श्री सर्वज्ञभाषित ज्ञानादिक विद्या को ही ग्रहण करना चाहता हूँ।'
ऐसा कहकर उसने चमत्कार पाये ऐसी धर्मकथाएँ विस्तारपूर्वक कही। वह सुनकर प्रभव बोला, 'हे भद्र! पुण्य से प्राप्त हुए भोगों को आप क्यों नहीं भोगते हो? जंबूकुमार ने जवाब दिया, किपाक वृक्ष के फल की तरह जिस प्रकार अंत में दारुण कष्ट को देनेवाले और मनोहर दिखे-ऐसे विषयों को कौन समझदार मनुष्य भोगेगा? याने कोई न भोगेगा।' ऐसा कहकर प्रथम उसने मधु बिन्दु का दृष्टांत कहा, फिर से प्रभव ने कहा, 'आपको पुत्र होने के बाद दीक्षा लेनी योग्य है क्योंकि पिण्ड देनेवाला पुत्र न हो तो उसे स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती।' यह सूनकर जंबूकुमार ने हँसकर कहा, 'यदि ऐसा ही है तो सूअर, सर्प, श्वान, साँड वगैरह के कई पुत्र होते हैं, जिससे स्वर्ग में वे ही जायेंगे और बाल्यावस्था से ब्रह्मचर्य पालनेवाले स्वर्ग में नहीं जायेंगे?' तत्पश्चात् जंबूकुमार की आठ स्त्रियाँ क्रमानुसार बोली। उनमें पहली और
'जिन शासन के चमकते हीरे • २७८