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एक उद्यान में जाकर उसने आतापना प्रारंभ की। सात-आठ दिन हुए। आकस्मिक वहाँ कोई एक वेश्या को एक पुरुष की गोद में सोते हुए देखा, दूसरा पुरुष उसके बालों में पुष्प की वेणी बांध रहा था। तीसरा पुरुष उसे पंखे से हवा डाल रहा था, चौथे ने उसके मस्तक पर छत्र धरा था और पाँचवां उसके शरीर की थकान उतारता था। इस प्रकार पाँच पुरुषों से सेवा पाती गणिका को देखकर सुकुमारिका ने सोचा, 'अहो! इस स्त्री को धन्य है कि पांच पांच पुरुष तो उसकी सेवा करते हैं ! और मुझे तो किसीने चाहा ही नहीं, पति ने त्यज दिया।' ऐसा विचार करके उसने नियाणा बांधा कि, 'यदि मेरे प्रारंभ किये हुए तप का कुछ भी फल हो तो मुझे भी इस भाँति पांच भरथार प्राप्त हो।' अन्य साध्वियों ने उसे ऐसा नियाणा न बांधने के लिये बड़ा समझाया। पर व नहीं मानी। तत्पश्चात् आठ माह तक संलेखना करके वह सौधर्म में नौ पल्योपम के आयुष्यवाली देवी हुई। वहाँ से वह पांचाल देश में कपिलपुर नामक नगर में द्रुपद नामक राजा के यहाँ पुत्री के रूप में अवतरित हुई। राजा ने बड़े धामधूम से जन्मोत्सव मनाया और उसका नाम द्रौपदी रखा ।क्रमानुसार वयवृद्धि होते ही पिता ने उसे धर्म-कर्म शास्त्रादि में प्रवीण बनाया।
: समय होते ही द्रौपदी युवा बनी। द्रुपद राजा उसका ब्याह कराने के लिये योग्य वर ढूंढने की चिंता में थे।
बड़ा विचार करके उसने द्रौपदी का ब्याह राधाबेध करनेवाले के साथ करने का तय किया। उसने कई देशों में इस बारे में कुंकुम पत्रिका भेजी। सब राजा इकट्ठे हुए तब द्रुपद राजा ने जाहिर किया कि जो कोई भी इस राधाबेध को सिद्ध करेगा उसके साथ मेरी इस पुत्री का ब्याह होगा।'
राधाबेध में एक ऊँचा स्तंभ खड़ा किया था। उसके पर एक घूमता चक्र लगाया गया था। उस पर एक पूतली रखी गयी थी। नीचे भूमि पर तैल से भरी एक कढ़ाई रखी। अब नीचे तैल की कढ़ाई में पडते प्रतिबिंब पर नज़र डालकर उपर घूमते हुए चक्र पर रखी हुई पूतली की बाँयी चक्षु तीर से बेधनी थी। राधा याने पूतली और बेध याने बेधना । यह काम करने के लिये कई राजा तथा राजकुमारों ने मेहनत की पर कोई कर सका नहीं। तब अर्जुन ने खड़े होकर आसानी से उस पूतली को बेधा और राधाबेध सिद्ध किया। उस वक्त द्रौपदी ने उसके गले में वरमाला आरोपित की। वरमाला अर्जुन के अन्य चारों भाइयों के कण्ठ में भी गिरी! यह देखकर राजा सोचने लगे, अब करना क्या?' वरमाला तो पाँचों भाइयों के गले
जिन शासन के चमकते हीरे • २८४