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लेने पर भी वन वन भटक रहा हूँ । मुझे यह कहें कि इस असह्य दुःख का अंत कब आयेगा? मेरे प्रारब्ध में सुख है या नहीं?'
आचार्यदेव ध्यानस्थ बने । उनको देवी अम्बिका के शब्द आये। उन्होंने आँखे खोलकर कुमारपाल को कहा, 'वत्स ! तुझे थोड़े समय के बाद राज्य मिलेगा। तू इस गुजरात का राजा बनेगा ।'
'कुमारपाल इस बात पर हँस पडा... उसने कहा, 'जिस प्रकार एक भिखारी से अधिक मेरी दशा खराब है, कभी दो-तीन दिन खाने के लिये अन्न नहीं मिलता - ऐसा मैं अभागी राजा बनूंगा? नहीं रे नहीं...?'
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गुरुदेव ने कहा, 'कुमार ! तेरी बात भी सच्ची है। ऐसी स्थिति में तुझे राजा बनने की बात सच्ची न लगे, परंतु मुझे तेरा भविष्य बड़ा ही उज्ज्वल लगता है । ' उस समय महामंत्री उदयन उपाश्रय में आये। उसने गुरुदेव को वंदना की और पास में बैठा ।
कुमार ने सोचा, 'ये योगी पुरुष हैं, उनका कथन गलत नहीं होगा, परंतु इतना तो पूछ लूं कि मुझे कब राज्य मिलेगा?"
उसने गुरुदेव को पूछा, 'हे योगीराज ! क्या आप कह सकोगे कि किस वर्ष में, किस माह में और किस तिथि के दिन में राजा बनूंगा?"
गुरुदेव ने ध्यान धर कर जवाब दिया, 'वि. सं. ११९९ मागशीर्ष कृष्ण चौथ के दिन तूझे राजगद्दी मिलेगी।'
उन्होंने शिष्य से यह भविष्यकथन दो कागजों पर लिखवाया। एक कागज कुमारपाल को दिया और दूसरा कागज महामंत्री उदयन को दिया ।
आचार्यदेव ने उदयन मंत्री को एक तरफ लेजाकर, कुमारपाल की कठिनाइयाँ समझायी और उसकी खबर लेते रहने के लिये समझाया और कहा, 'यह भविष्य का राजा है, इसके प्राणों की रक्षा करनी है। सिद्धराज उसे मारने के लिये प्रयत्नशील है । किसीको पता न चले उस प्रकार आपकी हवेली में उसे रखो।' आचार्यश्री की आज्ञानुसार वे कुमारपाल को अपने यहाँ ले गये। लम्बे समय के बाद कुमारपाल ने वहाँ स्वादिष्ट भोजन किया और थकान उतारने के लिए आराम से बारह घण्टे की नींद खींच डाली।
कुछ दिन शांति से गुजर गये। गुप्तचरों द्वारा सिद्धराज को पता चला कि कुमारपाल खंभात में हैं। उसने सैनिको की एक टुकडी कुमारपाल को ढूंढकर मार
जिन शासन के चमकते हीरे • २५९