Book Title: Jinshasan Ke Chamakte Hire
Author(s): Varjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
Publisher: Varjivandas Vadilal Shah

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Page 299
________________ शीशा एक पत्थर की शिला पर पछाड़ा, शिला जो पत्थर की थी तो भी पेशाब की महिमा से सुवर्ण शिला बन गयी। यह देखकर नागार्जुन विस्मित होकर लज्जित होकर बोला : ___ 'मैंने तो मेहनत से क्लेश सहन करके कोटि वेध रस बनाया हुआ था वह अर्थात् वैसा कोटी वेध रस तो उनके शरीर से उत्पन्न हुए पेशाब में भी स्वभाव से ही रहा है। इसलिए धन्य है उनको।' ___तत्पश्चात् नागार्जुन ने अपना अभिमान छोड़कर पादलिप्ताचार्य को कल्पवृक्ष के समान मानकर उनकी सेवा में आकर रहा। ___एक बार शालिवाहन राजा के दरबार में चार बड़े पण्डित एक एक लाख श्लोक के चार बड़े पुस्तक लेकर आये। राजा को इन पुस्तकों को पढ़ने के लिये कहा। राजा ने कहा, 'इतने बड़े पुस्तक पढ़ने की फुर्सत नहीं है। पण्डितों ने उनका सारांश छोटे पुस्तकों में करके राजा को पढने के लिये दिया। राजा ने उसे भी पढ़ने की फुर्सत नहीं है ऐसा कहा। इससे पण्डितों ने एक ही श्लोक में सारांश प्रस्तुत किया। यह सुनकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ। उसमें आत्रेय नामक पण्डित ने पूरे वैदकशास्त्र का सार एक ही पाद में सुनाया, "जीर्णे भोजन मात्रेयः" - याने भोजन पचने के बाद ही दूसरा भोजन करना - ऐसा वैदक शास्त्र का स्पष्ट मत है। दूसरे कपिल मुनि ने कहा "कपिलः प्राणी दया" - प्राणी पर दया करने से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। तीसरे बहस्पति ने नीति शास्त्र का सार कह सुनाया कि 'बृहस्पति विश्वासः,' किसी का भी विश्वास रखना नहीं। चौथे पंचाल नामक पण्डित ने कहा कि पंचालः स्त्रीषु मार्दवं' इसमें कामशास्त्र सार है कि स्त्री के साथ कोमलता रखनी - इन चारों पण्डितों की पण्डिताई देखकर उन्होंने बड़ा अच्छा सत्कार किया। इतना ही नहीं राजा उनकी पण्डिताई मे इतना लीन हो गया कि बात बात में सभा के बीच या जहाँ तहाँ उनकी ही प्रशंसा करता रहता था। इससे राजा की भोगवती रानी एक बार चीढ गयी और नाराज होते हुए बोली : 'वादी रूप हाथी मद में आकर भले ही गर्जना करे, मगर पादलिप्तसूरी रूप सिंह की आवाज़ जब सूनेंगे तब शीघ्र उन्हें अपना मद छोड़कर भाग जाना पड़ेगा।' ___ पादलिप्ताचार्य की इतनी प्रशंसा सुनकर राजा ने शीघ्र ही अपनी ओर से उन्हें आमंत्रण देने के लिये दीवान को भेजा राजा के आमंत्रण को मानकर जिन शासन के चमकते हीरे • २७२

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