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हो ।' चित्रकार की विनय से भरी वाणी से यक्ष प्रसन्न होकर बोला, 'हे चित्रकार, वर माँग।' वह बाल चित्रकार बोला, 'हे देव! यदि आप इस गरीब पर प्रसन्न हुए हो तो मैं ऐसा वरदान माँगता हूँ कि अब किसी चित्रकार को मारे नहीं । यक्ष बोला, 'मैने तूझे मारा नहीं, तब से ही किसी को भी मारना अब बंद है। परंतु हे भद्र ! तेरे स्वार्थ की सिद्धि के लिए अब दूसरा वरदान माँग ले।' युवा चित्रकार बोला, 'हे देव ! आपने इस नगरी की महामारी हटायी, उससे ही मैं कृतार्थ हो गया हूँ।' यक्ष विस्मित होकर बोला, 'कुमार ! परमार्थ के लिये वरदान मांगा, जिससे मैं तुझ पर पुनः संतुष्ट हुआ हूँ । इसलिये स्वार्थ के लिये कुछ वरदान माँग ले।' चित्रकार बोला, 'हे देव ! यदि विशेष संतुष्ट हुए हो तो मुझे ऐसा वरदान दो कि जिससे कोई मनुष्य, पशु या अन्य का मैं एक अंश देखूं तो उस अंश के अनुरूप उसके पूरे स्वरूप को वास्तविक रूप से आलेखित करने की शक्ति मुझे प्राप्त हो ।' यक्ष ने 'तथास्तु' कहा । तत्पश्चात् नगरजनों से बहुमान पाकर वह उस वृद्धा तथा अपने मित्र पत्रकार से अनुमति लेकर शतानिक राजा से अधिष्ठित कौशांबी नगरी में आया ।
कौशांबी में एक बार राजा लक्ष्मी से गर्वित ऐसीराज्यसभा में बैठा था। उस समय देश-परदेश आते जाते एक दूत को पूछा, 'हे दूत ! जो अन्य राजाओं के पास है और मेरे पास नहीं है ऐसा क्या है वह मुझे बताओ।' दूत बोला, 'हे राजन् ! आपके यहाँ एक चित्रसभा नहीं है।' यह सुनकर शतानिक राजा ने अपने नगर में बसे चित्रकारों को बुलवाकर एक चित्रसभा बनाने की आज्ञा दी। चित्र बनाने के लिये हरेक चित्रकार को उनकी जरूरत के अनुसार जगह बाँट दी। उस युवा चित्रकार को अंतःपुर के नज़दीक का एक भाग चित्रकाम के लिये मिला । वहाँ चित्रकार्य करते हुए एक खिड़की में से मृगावती देवी का अंगूठा उसे दिखाई दिया। इस पर से' यह मृगावती देवी होगी' - ऐसा अनुमान करके उस चित्रकार यक्षराज के वरदान से उसका स्वरूप यथार्थ रूप से आलेखित करने लगा । अंत में उसके नेत्रों का आलेखन करते समय तुलिका से मसी का एक बिंदु चित्र में मृगावती की जांघ पर गिरा । तत्काल चित्रकार ने वह पोंछ लिया। दुबारा मसी का बिंदु वहीं जा गिरा उसे भी पोंछ डाला। तत्पश्चात् तीसरी बार बिंदु गिरा देखकर चित्रकार ने सोचा, जरूर इस स्त्री के उरु प्रदेश में ऐसा लांछन होगा। तो यह लांछन भले ही रहा, मैं अब पोछूंगा नहीं। तत्पश्चात् उसने मृगावती का पूरा चित्र आलेखित किया। इतने में चित्रकार्य देखने के लिए राजा वहाँ आया। चित्र देखते मृगावती के चित्र मे जाँघ
जिन शासन के चमकते हीरे • १८८