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-श्री शुभंकर
पृथ्वीपुर नामक नगर में शुभंकर नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसको धर्म का मर्म जाननेवाली जैनमति - गुणवंती नामक भार्या थी । यह ब्राह्मण विद्याभ्यास करने के लिये परदेश गया।वहाँ उसने चार वेद, अठ्ठारह पुराण, व्याकरण, अलंकार, न्याय, साहित्य, कोश वगैरह कई शास्त्रों का अभ्यास किया। तत्पश्चात् स्थान स्थान पर अनेक विद्वानों को वाद-विवाद में जीतकर जय पाता हुआ अपने घर लौटा। वहाँ भी वह अपने शास्त्रज्ञान का आडम्बर सब लोगों को दिखाने लगा।वह देखकर उसकी जैन धर्मी भार्या ने सोचा कि 'यह मेरा पति एकांतवादी शास्त्र पढ़ा है, परंतु स्याद्वाद मार्ग को नहीं जाननेवाला मनुष्य वस्तु का यथायोग्य विवेचन जानता नहीं है, इसलिये मैं उसको कुछ पूछु ।' ऐसा निर्णय करके अपने पति को पूछा, 'हे स्वामी ! सर्व पाप का बाप कौन?' ब्राह्मण ने कहा, 'हे प्रिया! मैं शास्त्र में देखकर बताऊँगा।' इसके बाद जितने शास्त्र का अभ्यास किया था वे सब उसने देखे मगर उसमें से पाप का बाप कहीं भी निकला नहीं। इससे खेद पाकर उसने स्त्री को कहा, 'हे प्रिया! तेरे प्रश्न काउत्तर तो किसी शास्त्र में से निकलता नहीं है परंतु तूने यह प्रश्न सुना कहाँ से?' वह बोली, 'रास्ते में जाते हुए कोई जैन मुनि के मुख से सुना था कि 'सर्व पापों का एक पिता है' सो मैं आपका उसका नाम पूछती हूँ।' विप्र बोला, 'मैं साधु के पास जाकर पूछ आऊँ और संदेहरहित हो जाऊँ।' बाद में वह विप्र जैन साधू के पास जाकर बैठा और संस्कृत भाषा में कई प्रश्न किये; उसके यथोचित उत्तर सुनकर वह बड़ा खुश हुआ। तत्पश्चात् उसने पूछा, 'हे स्वामी! पाप के बाप का नाम कहो।' गुरु ने कहा, 'संध्या समय पर आप यहाँ आना, उस समय मैं उसका नाम कहूँगा।' ब्राह्मण अपने घर लौटा।
गुरु ने सोचा, 'इस ब्राह्मण को प्रतिबोध कराने के लिये जरूर इसकी भार्या ने भेजा लगता है, इसलिए कोई भी उपाय से उसे प्रतिबोधित करूं।' यों सोचकर एक श्रद्धालु श्रावक को गुरु ने कहा, 'आपके घर से दो अमूल्य रत्न लाकर मुझे दीजिये, एक व्यक्ति के प्रतिबोधित करने के लिये जरूरत है और दूसरा कोई चाण्डाल से एक गधे का मुर्दा उठवाकर इस उपाश्रय से सो गज की दूरी पर एकांत जगह रखवा दे।' श्रावक ने दोनों कार्य शीघ्र कर दिये। संध्या समय होते ही वह ब्राह्मण गुरु के पास आया। गुरु ने उसे एकांत में कहा, 'हमारा एक कार्य करना
जिन शासन के चमकते हीरे • १९५