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यह साधूपुरुष उनको कोई महान विद्यासिद्ध पुरुष लगा। दोनों ने उनकी वंदना करके कुशलता पूछी ।
वृद्ध महात्मा ने उनको पूछा, 'कहाँ जाने निकले हो?' दोनों ने कहा, 'विद्याप्राप्ति के लिये गौड देश जाने के लिये निकले हैं।'
वृद्ध पुरुष ने कहा, 'विद्याप्राप्ति के लिये उतना दूर जाने की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हें तुम्हारी मनोवांछित विद्याएँ दूंगा। लेकिन मैं चल नहीं सकता और मुझे गिरनार जाना है, आप मुझे वहाँ पहुँचा दो, मैं आपको विद्याएँ दूंगा।'
दोनों साधू गाँव के मुखियों के पास जाकर डोली और उठानेवाले मनुष्यों की व्यवस्था कर आये ।
दोनों मुनि बाते करते करते सो गये, उन्हें पता ही न चला। ब्राह्म मुहूर्त में जब वे जगे, श्री नवकार मंत्र का स्मरण करके आँखे खोली तो... उनके आश्चर्य के बीच वे पहाडो में थे। खेरालु से वे यहाँ कैसे पहुँचे? यह तो गिरनार लगता है । कोई विद्याशक्ति ने हमें यहाँ लाकर छोड़ दिया है।
दोनों मुनि खड़े हुए। एक घटाटोप वृक्ष के नीचे खड़े रहे। अभी सूर्योदय नहीं हुआ था। उन्होंने अपने समीप एक प्रकाशमय तेज का वर्तुल देखा । तीव्र प्रकाश फैल रहा था। दोनों के लिये यह नया आश्चर्य था ।
एक तेजस्वी देह प्रभाववाली देवी प्रकट हुई। वह दोनों महात्माओं के समीप आयी। उसके मुख पर थोड़ी मुस्कान थी । वह बोली :
'मैं शासनदेवी हूँ, तुम्हारे उत्कृष्ट भाग्य से आकर्षित होकर यहाँ आयी हूँ।' 'परंतु हमें खेरालु से यहाँ कौन ले आया ?' सोमचन्द्र मुनि ने
'मैं ही ले आयी हूँ आपको।' देवी बोली।
पूछा।
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'और हमारे साथ रात्रिवास करनेवाले वृद्ध महात्मा कहाँ गये?"
'वह मैं ही थी, विद्याओं की आपकी तीव्र अभिलाषा जानकर उस रूप में मैं ही आपको मिली थी। मैं आपको यहाँ गिरनार महातीर्थ में ले आयी हूँ। इस तीर्थ के अधिपति है भगवान नेमनाथ । '
'महात्माओं ! यह पहाड़ अद्भुत है। यहाँ अनेक दिव्य औषधियाँ है । यहाँ की हुई मंत्रसाधना जल्दी सिद्ध होती है। मैं तुम्हें कई दिव्य औषधियाँ बताऊँगी और सुनते ही सिद्ध हो जाय ऐसे दो मंत्र दूंगी।'
'एक मंत्र से देवों को बुला सकोगे और दूसरे मंत्र से राजा-महाराजा वश
जिन शासन के चमकते हीरे २५०