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आश्चर्यचकित हो गया।
गिरनार का पहाड़ उतरकर गुरुदेव को प्रभास पाटण जाकर सोमनाथ महादेव का दर्शन करने की बिनती की। आचार्यदेव ने सोमनाथ जाने की संमति दी । राजा के मन में शंका थी कि जैन आचार्य सोमनाथ महादेव को नमन करेंगे या नहीं। परंतु आचार्य देव तो महादेव की मूर्ति के समक्ष वीतरागी महादेव को स्मृति पट्ट पर लाकर प्रणाम करके स्तुति बोलने लगे । ४४ श्लोक बनाकर बोले : 'जन्म रूपी बीच के अंकुर को जन्म देनेवाले, रागादि जिनके नाश पाये हैं वे, विष्णु हो, शिव हो या जिन हो - उनको मेरे नमस्कार ।'
गिरनार की यात्रा करके संघ कोडीनार आया । कोडीनार में अंबिकादेवी याने साक्षात् देवी। उसके प्रभाव की बातें सौराष्ट्र एवं गुजरात में फैली हुई है।
राजा ने आचार्यदेव को अति नम्रता से बिनंती की : 'गुरुदेव मेरे पास सबकुछ है, फिर भी मैं और रानी दोनों दुःखी हैं, क्योंकि आप जानते हैं कि हमें एक भी पुत्र नहीं है।' इस कारण गुरुदेव आप देवी अम्बिका की आराधना करके पूछ लो कि मुझे पुत्र मिलेगा या नहीं? और मेरे मृत्यु के बाद गुजरात का राज्य कौन भोगेगा?'
आचार्यदेव ने कहा, 'मैं देवी की आराधना करके पूछ लूं ।' आराधना के लिये आचार्य देव ने तीन उपवास किये, तत्पश्चात् देवी के मंदिर में बैठ गये; ध्यान में मग्न हो गये। तीसरे दिन मध्यरात्रि के समय देवी अंबिका गुरुदेव के सामने प्रकट हुई। देवी ने गुरुदेव के हाथ जोड़कर वंदना की और पूछा, 'गुरुदेव ! मुझे क्यों याद किया?"
'गुजरात के राजा सिद्धराज के भाग्य में पुत्रप्राप्ति का योग है या नहीं - यह पूछने के लिये आपको याद किया है।'
देवी ने कहा, 'उसके पूर्वजन्म के पापकर्मों के योग से पुत्रप्राप्ति नहीं होगी । ' ' तो सिद्धराज के मृत्यु के बाद गुजरात का राजा कौन होगा? देवी ! ' आचार्यश्री ने पूछा।
देवी ने कहा, 'त्रिभुवनपाल का पुत्र कुमारपाल राजा बनकर जैन धर्म का बड़ा प्रसार करेगा । '
इतना कहकर देवी अदृश्य हो गयी। आचार्यदेव अपने स्थान पर आये । तीन दिन के उपवास का पारणा किया।
राजा सिद्धराज खूब उत्कण्ठा के साथ गुरुदेव के पास आया। गुरुदेव की
जिन शासन के चमकते हीरे २५५