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वहाँ जाकर मुझे उनकी उपासना करनी चाहिये। इस प्रकार विचारते हुए उन्होंने काश्मीर जाकर सरस्वतीदेवी की उपासना करने के लिये गुरुदेव से आज्ञा मांगी। और गुरुदेव ने प्रेमपूर्वक काश्मीर जाने के लिये अनुमति व आशीर्वाद दिये । शुभ दिन अन्य एक मुनि के साथ सोमचन्द्र मुनि ने प्रयाण किया ।
विहार करते हुए वे खंभात नगर के बाहर आये । वहाँ नेमनाथ भगवान का सुन्दर जिनालय था । वहाँ भगवान की नयनरम्य मूर्ति देखकर सोमचन्द्रजी ध्यान में बैठ गये और वातावरण शांत होने से रात्रि को उसी मंदिर में सरस्वती देवी की आराधना प्रारंभ करने लगे। भगवान के सामने पद्मासन लगाकर बैठ गये और देवी सरस्वती के ध्यान में लीन हो गये। इस प्रकार रात्रि के छः घण्टे बीत गये। मुनिराज स्थिर मन से जाप-ध्यान कर रहे थे और देवी सरस्वती साक्षात् प्रकट हुई। देवी ने मुनि पर स्नेह बरसाया । कृपा का प्रपात बहाया। देवी ने कहा, 'वत्स! अब मुझे प्रसन्न करने के लिये तुझे काश्मीर जाने की जरूरत नहीं है। तेरी भक्ति और ध्यान से मैं देवी सरस्वती तुझ पर प्रसन्न हुई हूँ। मेरे प्रसाद से तू सिद्ध सारस्वत् बनेगा । ' इतना कहकर देवी तत्काल अदृश्य हो गयी और सोमचन्द्र मुनि की प्रज्ञा तत्काल विकसित हुई, उनके मुख से सरस्वती की स्तुतिओं का प्रवाह बहने लगा । साथ साथ भगवान नेमनाथ की स्तवना की ।
प्रात: होते ही वे धर्मशाला में आये और सहवर्ती मुनि को कहा, जो काम काश्मीर जाकर करना था वह सरस्वती की कृपा से यहाँ पर हो गया है। चलो हम गुरुजी के पास जावे।'
दोनों मुनिराज गुरुजी के पास पहुँच गये और रात्रि का वृत्तांत गुरुदेव को कह सुनाया। गुरुदेव ने सोमचन्द्र मुनि के मुख पर परिवर्तन देखा। अपूर्व तेज उनको दिखा। वे बड़े प्रसन्न हुए और निखालस हृदय से सोमचन्द्र मुनि की प्रशंसा की । गुरु भी गुणवान शिष्य की प्रशंसा करते हैं।
गुरुदेव ने कहा, 'वत्स! एक ही दिन की उपासना से तू ऐसी सिद्धि प्राप्त कर सका। यह तेरा महान सौभाग्य उदय में आया है। अब तू कोई भी विषय पर लिख सकेगा, दूसरों को समझा सकेगा। तू राजा-महाराजाओं को प्रतिबोध देकर मोक्षमार्ग का आराधक बन सकेगा । सोमचन्द्र मुनि ने नम्रता से कहा, 'गुरुदेव, आपकी कृपा से यह सिद्धि मिली है।'
तब से सोमचन्द्रमुनि धर्मग्रंथो का सर्जन करने लगे और दिन व रात एक ही
जिन शासन के चमकते हीरे • २४७