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में अग्नि भी जलाया नहीं और जल के स्थान पर जल भी रखा नहीं। और कोई भी भोजन करने पधारा तब उसने कोई भोजन सामग्री देखी नहीं, उससे आश्चर्य पाकर वह बैठा। शियलवती स्नान करके कमरे में जाकर पुष्पमाला हाथ में रखकर धूप-दीप करके बैठी और बोली, 'राजा भोजन करने आये हैं इसलिये नाना प्रकार के पकवान भवतु (हो जाये)।' ऐसा बोलने पर चारों मंत्रियों ने उच्च स्वर में कहा, 'भवतु ।' तत्पश्चात् मोदक वगैरह सामग्री उस कमरे में से बाहर लाई गयी। फिर घृत, सब्जी वगैरह के लिए भी वैसा ही कहा और हरेक बार भवतु शब्द कहा। इस प्रकार राजा का भोजन पूर्ण हुआ। बाद में तांबुल वगैरह देकर मंत्री अजितसेन राजा के चरणों में गिरा। राजा ने मंत्री को पूछा : मंत्री! इस प्रकार रसोई कैसे तैयार हो गयी? मंत्री ने कहा, 'उस कमरे में मुझे प्रसन्न हुए चार यक्ष हैं जो हम मांगते हैं - वह देते है।' राजा ने कहा, 'वे हमें देदो, क्योंकि हमें नगर के बाहर जाना पड़ता है तब वहाँ भोजन माँगे तो वचन मात्र में हो जाये।' राजा के आग्रह से मंत्री ने उन्हें देना स्वीकृत किया।
तत्पश्चात् राजा से छिपाकर गुप्त ढंग से चारों को खड्डे में से निकालकर एक बड़े टोकरे में बंद करके अच्छे वस्त्रों से ढककर राजा को अर्पण करते हुए कहा, 'इस यक्ष का स्वरूप किसीको दिखाना नहीं। राजा ने टोकरे को रथ में छोड़कर स्वयं पैदल चलकर रास्ते में पवित्र जल छिड़कवाते हुए दरबार में लाया। अंतपुर की स्त्रियाँ पीछे पीछे चलती हुई यक्ष के गुण गाने लगी। इस प्रकार उन्हें दरबार में लाकर एक पवित्र स्थान पर रखवाये और प्रात: रसोइयों को रसोई करने की मनाही फरमा दी। प्रात:काल होते ही भोजन के समय बड़ी पवित्रता से राजा ने पूजा की। राजा ने विज्ञप्ति की, 'हे स्वामी! पकवान तथा दाल-चावल दीजिये।' इसलिये उन चारों ने भवतु' कहा लेकिन कुछ हुआ नहीं। इस कारण राजा ने टोकरा खोला तो उसमें पिशाच के समान चार मनुष्य देखने में आये। दाढी, मूछ व सिर के केश बढ़ गये थे। मुख गल गये थे। क्षुधा से कृश हो गये थे और नेत्र गहरे धंस गये थे। राजा ने उनको पहचाना तो हँसमुखे मंत्री कौए की तरह उपहास के पात्र बने । राजा ने हकीकत पूछी तो उन्होंने सर्व वृत्तांत बताया। इससे राजा ने हकीकत पूछी तो उन्होंने सर्ववृत्तांत बताया। इससे राजा आश्चर्यचकित होकर मस्तिष्क हिलाने लगा। शियलवती का शील, उसकी बुद्धि का प्रकाश और पुष्पमाला मुरझायी नहीं इसका कारण राजा की समझ में आया। इस कारण शियलवती की प्रतिष्ठा लोगों में बढ़ गई। तत्पश्चात् वे दम्पती क्रमानुसार दीक्षा लेकर मृत्यु पाकर पाँचवें देवलोक में गये और क्रमानुसार मोक्ष भी प्राप्त करेंगे।
जिन शासन के चमकते हीरे . १९९