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राज्य ले लेना चाहते हैं (युद्ध करनेवाले हैं) इसलिये आप मुझ पर कृपा करें तो मेरा राज्य स्थिर रहे ।' गुरु महाराज ने 'हा' कही। युद्ध हुआ। गुरु की कृपा से देवपाल जीता और राज्य स्थिर बना।राजा जैनी बना। गुरु को बडा राज्यमान मिला। राजा की प्रार्थना से बंदीजनो की स्तवना कराते पालकी में बैठकर गुरु दरबार में आने लगे; इस कारण वे प्रमाद में डूबने लगे। वृद्धवादीसूरी को इस बात का पता चला तो वे उन्हें बोध देने के लिए वहाँ आये। दरबार में जाते हुए पालकी में बैठे सिद्धसेन को देखकर पालकी उठानेवाले एक कहार को खिसकाकर उसके बदले वे स्वयं याने वृद्धवादी ने पालकी का एक दण्ड उठाया। परंतु स्वयं वृद्ध होने से पालकी की चाल में परिवर्तन हो गया। पालकी हचकोले खाती हुई - तेडीमेडी होने लगी। इस कारण अंदर बैठे हुए - सिद्धसेनसूरी मद में आकर बोल उठे :
भूरि भार भरा क्रांतः
स्कंधा : कि तव बाधति। अर्थात् अधिक भार बढ़ जाने से पीडीत हो रहा है तो क्या तेरा स्कंध (कंधा) दुखता है?
सिद्धसेन को 'बाधते' बोलना चाहिये था, उसके स्थान पर बाधति बोला - इस व्याकरण दोष के कारण वृद्धवादी बोले,
तथा बाधते स्कंधो
यथा बाधति बांधते। अर्थात् 'उनका कंधा दुखता नहीं है, जितना बाधति प्रयोग सुनने से मन में दुःख होता है।'
यह सूनकर सिद्धसेनसूरी मन में खिसिया गये। उन्होंने सोचा कि मेरे गुरु के सिवा मेरी वाणी में ऐसा दूषण बतानेवाला कोई नहीं है। क्या ये मेरे गुरु तो नहीं है? ऐसा मानकर तुरंत ये पालकी मे से उतर गये और गुरु के चरणों में गिरे । उन्होंने
अपने प्रमाद को छोड़कर, शुद्ध बनकर राजा से आज्ञा लेकर गुरु के साथ विहार किया और पूर्व की भाँति ही बराबर संयम पालन करने लगे। ___ कालानुसार वृद्धवादी सूरी स्वर्ग में गये। सिद्धसेन एक समय मग्गदयाणं वगैरह प्राकृत पाठ बोलने पर अन्य दर्शनीओं के हाँसी करने पर - वे शरमिंदा हुए। बाल्यावस्था से ही उन्हें संस्कृत का अभ्यास था और कर्मदोष के अभिमान में आकर सिद्धसेन ने नवकार पद 'नमोर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः' ऐसा एक पद संस्कृत में बना दिया। पश्चात् - सब सिद्धांत संस्कृत में करने की इच्छा रखी तब
जिन शासन के चमकते हीरे • २३५